☠️ विषपान और नीलकंठ की उत्पत्ति भगवान शिव ने बिना एक क्षण गंवाए, विष को अपने हाथों में लिया और पी गए। लेकिन उन्होंने उसे अपने गले से नीचे नहीं उतरने दिया, ताकि वह उनके शरीर को नष्ट न करे। विष उनके कंठ में अटक गया और वहाँ से उनकी त्वचा नीली हो गई। तभी से वे “नीलकंठ” कहलाए। देवताओं ने आकाश से पुष्पवर्षा की। पार्वती जी ने तुरंत शिव के गले को पकड़ लिया ताकि विष नीचे न जाए। सभी ऋषि-मुनियों ने स्तुति की और शिव की त्यागमयी महिमा का गुणगान किया।