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Best Success Story || धरती की बेटी: एक गाँव की लड़की से एग्रीटेक उद्यमी बनने की प्रेरणादायक कहानी

“धरती की बेटी: एक गाँव की लड़की से एग्रीटेक उद्यमी बनने की प्रेरणादायक कहानी”

1. शुरुआत: मिट्टी में खेलती लड़की

learnkro.com– यह कहानी है “सरिता यादव” की, जो उत्तराखंड के एक छोटे से गाँव बागेश्वर में पैदा हुई। उसका बचपन खेतों, गायों, और गाँव के पर्वों के बीच बीता। जहाँ ज्यादातर लड़कियाँ कम उम्र में ही शादी कर दी जाती थीं, सरिता बचपन से ही कुछ अलग करना चाहती थी।

उसे मिट्टी से बहुत लगाव था। जब माँ खेतों में काम करतीं, वह गौर से देखती थी – बीज कैसे बोए जाते हैं, फसल कैसे बढ़ती है, मिट्टी कैसे महकती है। उसे खेतों से बातें करना अच्छा लगता था।

गाँव में अक्सर किसान परेशान रहते थे – कभी खाद नहीं मिली, कभी मौसम ने धोखा दे दिया, कभी बाजार में दाम गिर गए। सरिता सोचती, “क्यों हमारे किसान इतने मजबूर हैं?”

2. शिक्षा की राह – संघर्ष और साहस

सरिता के गाँव में सिर्फ आठवीं तक का स्कूल था। जब वह 10वीं पढ़ना चाहती थी, तो लोगों ने कहा – “लड़की है, ज्यादा पढ़ा कर क्या करेगी?” लेकिन उसके पिता ने उसका साथ दिया।

हर दिन वह 6 किलोमीटर दूर साइकल चलाकर स्कूल जाती थी। किताबें पुराने थीं, और इंटरनेट तो दूर, मोबाइल नेटवर्क भी मुश्किल से मिलता था। फिर भी उसने 12वीं में टॉप किया।

कॉलेज के लिए वह हल्द्वानी आई – एक नई दुनिया, नए सपने। यहाँ पहली बार उसने “स्टार्टअप” शब्द सुना। कृषि में तकनीक का इस्तेमाल कैसे हो सकता है, इस पर उसकी रुचि बढ़ी।

3. एक विचार जो सब बदल दे

कॉलेज में एक बार एक प्रोजेक्ट के दौरान, सरिता ने देखा कि गाँव के किसान स्मार्टफोन तो रखते हैं लेकिन तकनीक का सही इस्तेमाल नहीं कर पाते। उन्हें मंडी के दाम नहीं पता चलते, उर्वरक कब डालना है – इसकी जानकारी नहीं होती, और बिचौलियों से उन्हें बहुत नुकसान होता है।

वहीं से “मिट्टी AI” नाम का विचार जन्मा – एक ऐसा मोबाइल ऐप जो किसानों को मौसम की जानकारी, सही फसल चक्र, बीज की गुणवत्ता, बाजार मूल्य और सरकारी योजनाओं की जानकारी दे सके। और यह ऐप हिंदी और क्षेत्रीय भाषाओं में हो ताकि हर किसान समझ सके।

4. निवेश की चुनौती – और पहला बड़ा कदम

सरिता के पास न पैसे थे, न कोडिंग स्किल्स। लेकिन जिद थी। उसने YouTube से कोडिंग सीखी, freelancing करके थोड़ा पैसा जुटाया और एक छोटे वर्जन का ऐप तैयार किया।

पहली बार जब उसने किसी स्टार्टअप पिचिंग प्रतियोगिता में भाग लिया, तो लोग हँसे – “गाँव की लड़की क्या स्टार्टअप बनाएगी?” लेकिन उसके विचार में दम था। IIT दिल्ली के एक इवेंट में उसने तीसरा स्थान हासिल किया और 5 लाख रुपये का ग्रांट मिला।

5. मिट्टी AI – किसानों का साथी

सरिता ने उसी पैसे से Mitti AI का पहला प्रोफेशनल वर्जन लॉन्च किया। शुरुआत में सिर्फ उत्तराखंड के 300 किसानों ने ऐप इस्तेमाल किया।

लेकिन जल्द ही ऐप की ख़ासियत सामने आने लगी:

  • किसान अपने खेत की मिट्टी का रिपोर्ट डालते, और ऐप बताता कि कौन सी फसल सबसे उपयुक्त है।
  • मंडियों के रेट हर सुबह अपडेट होते।
  • बीज, खाद, और कीटनाशकों की सिफारिश मिलती।
  • सरकारी सब्सिडी और स्कीम की जानकारी सीधे मिलती।

बिना बिचौलियों के किसान सीधे ग्राहक से जुड़ने लगे। उनकी आय बढ़ी और लागत घटी।

6. कठिनाइयाँ – जब सब कुछ थम सा गया

लेकिन हर कहानी में एक मोड़ आता है। 2020 की कोविड महामारी ने सब कुछ बदल दिया। फंडिंग बंद हो गई, किसान फोन नहीं चला पा रहे थे, टीम के कुछ लोग कंपनी छोड़ गए।

सरिता बुरी तरह टूट गई। कई महीनों तक वह डिप्रेशन में चली गई, लेकिन गाँव लौटकर उसने फिर से मिट्टी को छुआ – और वही प्रेरणा बन गई।

उसने तय किया, “जब तक एक भी किसान परेशान है, मैं नहीं रुकूँगी।”

7. वापसी – किसानों के साथ कदम से कदम मिलाकर

सरिता ने इस बार जमीनी स्तर पर काम शुरू किया। वह खुद हर गाँव गई, किसानों से मिली, उन्हें ऐप इस्तेमाल करना सिखाया। उसने एक हेल्पलाइन शुरू की जहाँ किसान सवाल पूछ सकते थे।

वह सोशल मीडिया पर एक्टिव हुई – और धीरे-धीरे मीडिया का ध्यान उसकी तरफ गया।

NDTV, The Better India, और कई बड़े प्लेटफॉर्म्स ने उसकी कहानी कवर की। फिर निवेशक भी लौटने लगे।

2022 में उसे “National Agri Innovation Award” से नवाज़ा गया।

8. आज की सरिता – एक परिवर्तन की मिसाल

आज Mitti AI देश के 12 राज्यों में 5 लाख से ज्यादा किसानों तक पहुँच चुका है। सरिता ने एक “किसान पाठशाला” शुरू की है जहाँ ग्रामीण बच्चे और युवा खेती और टेक्नोलॉजी का प्रशिक्षण लेते हैं।

सरिता की कंपनी अब profit-making startup बन चुकी है, लेकिन उसका मुख्य मकसद आज भी किसानों की जिंदगी बेहतर बनाना है।

वह TEDx पर बोल चुकी हैं, महिला उद्यमियों की मिसाल बन चुकी हैं, और एक नया आंदोलन खड़ा कर चुकी हैं – “Tech for Farmers”


सीख जो यह कहानी देती है

  • आपके पास बड़ा सपना हो, तो साधन मायने नहीं रखते – संकल्प मायने रखता है।
  • गाँव की बेटियाँ भी स्टार्टअप चला सकती हैं – और देश बदल सकती हैं।
  • खेती सिर्फ परंपरा नहीं, भविष्य की स्मार्ट इंडस्ट्री है।
  • असफलता से डरना नहीं, उससे सीखकर और मजबूत बनना है।

निष्कर्ष:

सरिता की कहानी किसी फिल्म से कम नहीं। लेकिन यह सच्चाई है – एक गाँव की लड़की, जिसने अपने आस-पास की तकलीफों को देखा, समझा और उनका समाधान खुद तैयार किया।

आज वह लाखों किसानों की ज़िंदगी संवार रही है, और आने वाली पीढ़ी को सिखा रही है कि –

यदि आपके सपनों में समाज की भलाई है, तो ब्रह्मांड भी उन्हें साकार करने में लग जाता है।

 

The Sound of Clay: The Rise of Rishi Verma || Success story

 The Rise of Rishi Verma

 

Chapter 1: Born in Fire and Earth

learnkro.com– In a quiet gali of Varanasi, near the banks of the Ganges, lived Rishi Verma—a potter’s son whose hands molded clay before he could write his name. His father, Gopal Verma, was a skilled artisan, crafting diyas and earthen pots with mesmerizing finesse. But tradition and talent didn’t always translate to prosperity. The family’s earnings were seasonal, their lives dictated by festivals and fading demand.

Rishi studied at a local government school, often while helping his father at the wheel. Unlike most children who dreaded school, he longed for it. Books were his escape, and mathematics was his playground. Numbers made sense; poverty didn’t.

Chapter 2: Glimpses of a Bigger World

One afternoon, when Rishi was twelve, a group of foreign tourists wandered into their modest shop. Among them was

 

Professor Helen D’Souza, a ceramic artist from Goa. She was fascinated not just by the pottery but by the boy explaining it with such eloquence—in broken English, yet shining passion.

Intrigued, she visited daily, asking Rishi about his dreams. “To make something… big. Not just pots,” he said shyly, “but systems. I like solving problems.”

She left him with a gift: an introductory book on design thinking, and her contact number, in case he ever needed help. That book became his Bible.

Chapter 3: Wheels of Change

By the time he reached class 10, Rishi was building clay water filters for his school science projects. His idea? Create eco-friendly, low-cost filtration systems using traditional materials. While his classmates prepared charts, Rishi brought functional prototypes to every exhibition.

His breakthrough came at the National Innovation Fair for Rural Youth in Delhi, where he won second prize. With the small scholarship money, he bought his first laptop—secondhand, slightly dented, but to him, it gleamed like gold.

Chapter 4: Cracks in the Surface

Yet, hardship was never far. His father developed a respiratory illness due to years of exposure to kiln smoke. Hospital bills mounted, and Rishi considered dropping out. It was his mother, soft-spoken and stoic, who put her foot down. “You will go. I’ll take over your father’s work if I have to,” she said.

Rishi applied for a full-ride scholarship to the National Institute of Design (NID), Ahmedabad. He poured his soul into his portfolio—sketches of reimagined potter’s wheels, sustainable packaging, biodegradable water bottles made of baked clay.

The day the acceptance letter came, he ran barefoot to the temple steps and wept.

Chapter 5: Clay into Gold

Life at NID wasn’t smooth. Rishi struggled with English, with the digital tools his peers used effortlessly, and with being the “potter boy.” But clay grounded him. While others learned materials, he understood them. While they sketched theories, he prototyped realities.

In his third year, he invented the “Mitticool Filter Jar”—a low-cost, zero-electricity water purification system made entirely from locally sourced clay. The prototype received attention from NGOs and health startups.

Soon, a Bengaluru-based impact investor came on board. Rishi’s startup, “Dharti Solutions,” was born.

Chapter 6: Return to the Roots

At age 26, Rishi returned to his gali in Varanasi—not as the potter’s son, but as the CEO of a growing enterprise. He didn’t just set up manufacturing units—he created artisan-led cooperatives, empowering nearly 300 traditional potters across Uttar Pradesh and Bihar.

His mother’s proudest moment came when she saw his TEDx talk streamed on a neighbor’s phone. “Hum mitti ke log hain,” Rishi said in it, smiling. “But we’re not meant to stay buried.”

Chapter 7: Legacy in the Making

Today, Dharti Solutions supplies to over 15 countries. Rishi trains students through workshops on ethical design and rural innovation. His filters are used in refugee camps, remote villages, and even art galleries that celebrate sustainable living.

But Rishi still wakes up early to sit at the wheel once a week. He says it reminds him where he came from—and who he builds for.

RISING FROM DUST: THE STORY OF AYESHA MEHTA || Success Story

 THE STORY OF AYESHA MEHTA

Chapter 1: The Beginning

learnkro.com– In the quiet streets of Rajpipla, a small town nestled deep within Gujarat, a girl named Ayesha Mehta watched the world go by from the cracked verandah of her family’s rented home. Her father, a former textile mill worker, had lost his job in the city and returned home after an accident that left his right leg permanently injured. Her mother stitched clothes for neighbors, saving every rupee possible.

Ayesha, the eldest of three siblings, walked 6 kilometers daily to her school and back, her shoes torn but her spirit intact. She was average in grades, spoke in broken English, and got laughed at for dreaming big. Her dream

? To become an architect and design sustainable homes for people like her—those who had none.

Chapter 2: The Spark

The turning point came during a summer internship in 11th grade when she got to assist on a local housing project. Though most tasks involved carrying bricks and taking measurements, she got to observe the engineers and architects at work. One day, an architect noticed Ayesha sketching ideas in her notebook and encouraged her to pursue formal training.

That same evening, Ayesha cried while showing her sketches to her mother. “Do you think I’m dreaming too big?” she whispered.

“No, beta,” her mother said. “But if you want to build houses for others, you must first build a life for yourself.”

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Chapter 3: Climbing the Mountain

The road to architecture school wasn’t easy. Ayesha studied under candlelight and visited cyber cafés to learn AutoCAD and SketchUp on outdated systems. With no money for coaching, she relied on free YouTube tutorials and library books donated by a kind retired professor who saw her potential.

In 2017, she cleared the entrance exam for CEPT University in Ahmedabad. The day the results came, her father borrowed a friend’s phone to check the list. When they saw her name on it, they broke down in tears.

Chapter 4: Falling and Rising Again

But city life was overwhelming. Ayesha struggled to blend in with wealthier peers, battled homesickness, and flunked her first design jury. She considered quitting.

One evening, an old friend from her village called and said, “You represent us. If you give up, who’ll believe it’s possible?”

That night, something clicked. She stopped trying to fit in and focused on excelling. She sought mentorship, joined the sustainability club, and eventually won a design competition for eco-friendly housing funded by an international NGO.

Chapter 5: Homecoming

Five years later, Ayesha returned to Rajpipla—not as the girl with tattered shoes, but as the architect of the town’s first low-cost, solar-powered housing colony. She didn’t just build homes; she built hope.

Her designs now feature in international journals, and she runs a foundation training underprivileged students in design thinking and sustainable building techniques. But if you ask her, her proudest moment wasn’t winning awards—it was handing the keys of a new house to her own parents.

अंधेरे से उजाले तक: रवि की कहानी || Success Story

अंधेरे से उजाले तक: रवि की कहानी”

भाग 1: छोटे शहर का बड़ा सपना

Learnkro.com– गुजरात के एक छोटे से गाँव में, रवि नाम का एक साधारण लड़का रहता था। उसके पिता एक दर्ज़ी थे और माँ गृहिणी। गाँव में बिजली अक्सर गुल रहती थी, लेकिन रवि का सपना कभी मंद नहीं हुआ। वह बड़े होकर इंजीनियर बनना चाहता था।

बचपन से ही उसे मशीनों को खोलने, जोड़ने और समझने का शौक था। पिता के पुराने सिलाई मशीन के पुर्ज़ों से वह खिलौनों की जगह कुछ न कुछ नया बनाता रहता। उसके दोस्तों को क्रिकेट पसंद था, लेकिन रवि को विज्ञान के प्रयोगों में मज़ा आता।

लेकिन… एक दिन ऐसा आया जब उसके पिता की तबीयत बहुत बिगड़ गई और घर की आर्थिक स्थिति डगमगाने लगी। उस समय रवि दसवीं कक्षा में था, और यह वही मोड़ था जिसने उसे ज़िंदगी का असली पाठ पढ़ाया…

भाग 2: संघर्ष की आग में तपना

पिता की बीमारी ने परिवार को झकझोर दिया। रवि अब न सिर्फ एक विद्यार्थी था, बल्कि परिवार की जिम्मेदारी भी उसके कंधों पर आ गई थी। वह स्कूल से लौटकर पास के एक साइबर कैफ़े में काम करने लगा — कंप्यूटर साफ करना, प्रिंट निकालना, और ग्राहकों की मदद करना उसका रोज़ का काम बन गया।

यहाँ उसकी दोस्ती हुई मालिक के भतीजे अमन से, जो इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा था। अमन ने रवि को कोडिंग की दुनिया से परिचित कराया — HTML, CSS और फिर Python। रवि रात में कैफ़े का एक पुराना सिस्टम इस्तेमाल करता और कोडिंग के वीडियो देख-देखकर खुद सीखता।

उसके जीवन में एक नई रोशनी जग चुकी थी।

भाग 3: पहली जीत

बारहवीं पास करने के बाद रवि ने एक सरकारी पॉलीटेक्निक कॉलेज में दाख़िला लिया। वहाँ उसे छात्रवृत्ति मिली जिससे उसकी फीस भर पाना संभव हुआ। साथ ही, उसने ऑनलाइन फ्रीलांसिंग साइट्स पर छोटे-मोटे प्रोजेक्ट लेना शुरू कर दिया — वेबसाइट बनाना, फॉर्म डिज़ाइन करना, और डेटा एंट्री।

धीरे-धीरे उसके छोटे-छोटे कामों से पैसे आने लगे। उसने अपने पहले लैपटॉप के लिए खुद पैसे जमा किए। वो दिन उसके लिए एक सपने के सच होने जैसा था — जब उसने अपने पैसों से पहली बार एक नई चीज़ खरीदी थी।

भाग 4: सफलता की सीढ़ियाँ

तीन साल बाद रवि ने एक बड़ी कंपनी में इंटर्नशिप की। वहाँ उसने एक एप्लिकेशन डिज़ाइन किया जो ग्रामीण इलाकों के छात्रों को तकनीकी शिक्षा प्रदान करने में मदद करता था। उसी एप के ज़रिए उसे एक स्टार्टअप से ऑफर आया — “हम तुम्हारे आइडिया में निवेश करना चाहते हैं।”

अब वह सिर्फ एक कर्मचारी नहीं, बल्कि एक टेक्नोलॉजी स्टार्टअप का को-फाउंडर बन चुका था। उसके बनाए एप्लिकेशन ने कई राज्यों में हज़ारों छात्रों की मदद की।

भाग 5: गाँव में लौटा हीरो

सफलता की ऊँचाइयों तक पहुँचने के बाद, रवि अपने गाँव लौटा। उसने वहीं एक ‘Digital Learning Center’ शुरू किया — जहाँ छात्रों को मुफ्त में कोडिंग, डिजिटल स्किल्स और करियर गाइडेंस दी जाती है। अब वह अपने जैसे तमाम छोटे गाँव के युवाओं को सपने देखने और उन्हें पूरा करने की हिम्मत दे रहा है।

अंतिम विचार

रवि की कहानी हमें सिखाती है कि परिस्थिति चाहे कितनी भी कठिन क्यों न हो, अगर इरादा मजबूत हो और मेहनत सच्ची, तो कोई भी लक्ष्य असंभव नहीं।

सपनों की उड़ान: अंजलि की संघर्ष से सफलता तक की कहानी” || Success Story

 

सपनों की उड़ान

learnkro.com– बिहार के एक छोटे से गांव भवानीपुर में एक लड़की रहती थी—अंजलि कुमारी। उसका परिवार अमीर नहीं था, लेकिन उनके इरादे मजबूत थे। उसके पिता एक छोटे किसान थे, जो दिन-रात एक एकड़ ज़मीन पर मेहनत करते थे। उसकी मां सिलाई करके घर चलाने में मदद करती थीं। अंजलि के दो छोटे भाई-बहन थे, और एक उम्र से बड़ी जिम्मेदारी उसके कंधों पर थी।

लेकिन अंजलि अलग थी। उसकी आंखों में कुछ खास चमक थी, कुछ बड़ा करने की आग थी। जब वह सिर्फ 10 साल की थी, उसने तय किया:

“एक दिन मैं वर्दी पहनूंगी… किसी की सेवा करने नहीं, बल्कि देश की सेवा करने।”

उसका सपना था: IAS ऑफिसर बनना।

सपने की शुरुआत

अंजलि का स्कूल एक टूटी-फूटी सरकारी इमारत था, जिसमें ना बिजली थी, ना साफ पीने का पानी। बच्चे ज़मीन पर बैठते थे, और कई बार टीचर ही नहीं आते थे। उसके कई दोस्त कक्षा 6-7 के बाद पढ़ाई छोड़ चुके थे। लेकिन अंजलि का हौसला कायम रहा।

वो अपने चचेरे भाई से शहर की पुरानी किताबें मांग कर पढ़ती थी। रात को ढिबरी के नीचे बैठकर पढ़ाई करती थी।

एक दिन गांव में एक अफसर आए—सफेद एंबेसडर गाड़ी में, गार्ड्स के साथ। पूरा गांव देखने के लिए इकट्ठा हो गया। अंजलि हैरान थी—इतना सम्मान, इतनी शक्ति!

रात को उसने पिता से पूछा, “पापा, ये कौन थे?”

पिता बोले, “ये जिलाधिकारी थे। IAS अफसर। बहुत बड़ा एग्जाम पास करके बनते हैं।”

उस दिन अंजलि को अपना रास्ता मिल गया।

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संघर्षों की शुरुआत

जैसे-जैसे अंजलि बड़ी होती गई, चुनौतियां भी बढ़ती गईं। 10वीं में पढ़ाई के साथ उसे खेत में भी हाथ बंटाना पड़ता, घर का काम भी करना होता। लेकिन किताबें उसका साथ कभी नहीं छोड़ती थीं।

10वीं बोर्ड में उसने 87% अंक लाकर गांव में नाम रोशन कर दिया। स्कूल के प्रधानाचार्य ने कहा, “ये लड़की भवानीपुर की शान बनेगी।”

पर आगे की पढ़ाई के लिए स्कूल 10 किलोमीटर दूर था। उसके पास साइकिल नहीं थी, तो वो पैदल जाती थी—बारिश हो या धूप।

एक निर्णायक मोड़

12वीं की परीक्षा में अंजलि ने 92% अंक हासिल किए। अब वो पटना यूनिवर्सिटी में दाखिला चाहती थी। लेकिन खर्चा?

पिता बोले, “बेटा, हमारे पास इतने पैसे नहीं हैं।”

अंजलि बोली, “मैं ट्यूशन पढ़ा लूंगी… बस जाने दीजिए, पापा।”

वो पटना शिफ्ट हो गई—तीन लड़कियों के साथ एक कमरा शेयर करती थी। सुबह कॉलेज, शाम को ट्यूशन, और वीकेंड पर झाड़ू-पोंछा करती थी।

उसने B.A. में पॉलिटिकल साइंस ली और साथ ही UPSC की तैयारी शुरू कर दी।

UPSC की शुरुआत

UPSC दुनिया के सबसे कठिन परीक्षाओं में से एक है। लाखों लोग हर साल बैठते हैं, और कुछ सौ ही पास कर पाते हैं।

अंजलि के पास महंगे कोचिंग, लैपटॉप या मोबाइल नहीं थे। लेकिन इरादा था। वो लाइब्रेरी से पुरानी NCERT किताबें पढ़ती, अखबार से नोट्स बनाती और सीनियर्स से चर्चा करती।

2019 में उसने पहली बार परीक्षा दी—Prelims पास किया लेकिन Mains में फेल हो गई।

रात को चुपचाप रोई—but उसने हार नहीं मानी।

2020 में दोबारा कोशिश की—Mains पास कर लिया, लेकिन Interview में रह गई।

“शायद ये मेरे बस की बात नहीं है…” उसने सोचा।

लेकिन फिर उसे अपनी मां का चेहरा याद आया, अपने गांव की लड़कियां, और वो आग जो अभी भी अंदर जल रही थी।

वो फिर से किताबों में डूब गई।

अंतिम और निर्णायक प्रयास

2021 में अंजलि ने तीसरी बार परीक्षा दी।

अब वह पहले से ज़्यादा तैयार थी। उसने खुद के शॉर्ट नोट्स बनाए, मॉक इंटरव्यू दिए और एक बार दिल्ली जाकर रिटायर्ड IAS ऑफिसर से सलाह भी ली।

Prelims में अच्छा स्कोर आया। Mains के पेपर लिखे और मुस्कुराते हुए बाहर निकली।

Interview के दिन वह एक सादी सी साड़ी में, आत्मविश्वास से भरी हुई UPSC भवन में दाखिल हुई।

एक सवाल आया: “तुम IAS क्यों बनना चाहती हो?”

उसने उत्तर दिया: “ताकि कोई भी लड़की अपने सपने सिर्फ गरीबी की वजह से ना छोड़े।”

बोर्ड के सदस्य मुस्कुरा उठे।

AIR 38 – सपना हुआ साकार

30 मई 2022 को UPSC का रिजल्ट आया।

अंजलि कुमारी – All India Rank 38

पूरे गांव में जैसे त्योहार मनाया गया। मीडिया, स्थानीय नेता, हर कोई अंजलि की तारीफ कर रहा था।

जिस कलेक्टर ने कभी गांव में आकर उसे प्रेरित किया था, अब वो खुद अंजलि को कॉल कर रहा था।

पिता ने रोते हुए कहा, “अब मेरी बेटी ही कलेक्टर है।”

प्रभाव और पहल

LBSNAA मसूरी में ट्रेनिंग के बाद अंजलि ने एक वादा किया: “मैं अपने गांव को नहीं भूलूंगी।”

उसने गांव की लड़कियों के लिए Scholarship Fund शुरू किया और एक पहल चलाई:

“Dream Beyond Borders” – जिससे गांव और दूरदराज़ के छात्रों को मुफ्त गाइडेंस दिया जाता है।

वो स्कूलों में जाती, बच्चों को प्रेरित करती, और कहती:
“मैं कर सकती हूं, तो तुम भी कर सकते हो।”

आज की अंजलि

आज अंजलि झारखंड की एक जिला अधिकारी (District Magistrate) है।

उसने दूर-दराज़ के इलाकों में सड़कें बनवाई, आदिवासी बच्चों के लिए स्कूल खोले, और सरकारी योजनाएं सही लोगों तक पहुंचाईं।

उसकी आत्मकथा “छोटी सी लड़की, बड़ा सपना” अब स्कूलों में पढ़ाई जाती है।

युवाओं के लिए संदेश

अंजलि की कहानी सिर्फ IAS बनने की नहीं है, बल्कि ये कहानी है—

  • सपनों की ताकत की
  • संघर्ष से सफलता की
  • एक गांव की लड़की के दुनिया जीतने की

वो कहती है:

“पृष्ठभूमि नहीं, सोच आपकी पहचान बनाती है।”

“संसाधन नहीं, जज़्बा सफलता लाता है।”

निष्कर्ष

एक ऐसी लड़की जिसने कभी टूटी चारपाई पर बैठकर पढ़ाई की, आज वही ऑफिसर बनकर फैसले ले रही है।

अंजलि कुमारी की कहानी हर उस लड़की को उम्मीद देती है जो सपने देखने से डरती है।

यह कहानी सिर्फ प्रेरणा नहीं है…
यह एक सबूत है—कि सपने सच होते हैं।

the Auto Driver’s Son Who Became an IAS Officer || IAS Success Story

“वह लड़का जिसने सपने देखने की हिम्मत की: ऑटो चालक का बीटा IAS अधिकारी बन गया” Success Story 

Learnkro.comबिहार के एक छोटे से शहर के धूल भरे कोने में अनिल कुमार नाम का एक लड़का रहता था। उसके पिता राम प्रसाद ऑटो-रिक्शा चलाते थे और उसकी माँ नौकरानी का काम करती थी। मिट्टी और टिन की चादरों से बने उनके छोटे से घर में कोई विलासिता नहीं थी – लेकिन उसमें कुछ और भी शक्तिशाली था: उम्मीद।

अनिल का जन्म किसी खास परिवार में नहीं हुआ था। उसके पास महंगी किताबें या Google पर उत्तर खोजने के लिए स्मार्टफोन नहीं था। उसके पास जो था, वह था उत्सुक आँखें, एक पुरानी सेकेंड-हैंड स्कूल यूनिफॉर्म और IAS अधिकारी बनने का अटूट सपना।

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चुनौतियों से भरा बचपन
हर सुबह, अनिल सूरज उगने से पहले उठ जाता था। जब उसके दोस्त सोते या क्रिकेट खेलते, तो वह अपनी माँ की मदद पंप से पानी लाने, आँगन साफ ​​करने और अपना छोटा सा टिफिन पैक करने में करता – अक्सर सिर्फ़ नमक वाली सूखी रोटी। स्कूल के बाद, ट्यूशन या वीडियो गेम के बजाय, वह चाय की दुकान पर अंशकालिक काम करता था, मुस्कुराते हुए ग्राहकों की सेवा करता था और जार में सिक्के जमा करता था।

लेकिन स्टॉल पर उन लंबे घंटों के दौरान भी, उसकी आँखें काउंटर के नीचे छिपाकर रखी गई किताबों पर टिकी रहती थीं। जब दूसरे लोग राजनीति पर बात करते थे, तो वह चुपचाप अखबार पढ़ता था। जब दूसरे गपशप करते थे, तो वह तथ्यों को याद करता था और नोट्स संशोधित करता था। “एक दिन, मैं बैज के साथ वह सफेद वर्दी पहनूंगा, और मैं अपने देश की सेवा करूंगा,” वह खुद से फुसफुसाता था।

प्रेरणा की चिंगारी
एक दोपहर, सुश्री आरती वर्मा नामक एक आईएएस अधिकारी गणतंत्र दिवस समारोह के लिए अनिल के स्कूल में आईं। वह आत्मविश्वास से मंच पर आईं, शिक्षा की शक्ति के बारे में बात की और बताया कि कैसे सबसे गरीब बच्चा भी कड़ी मेहनत के माध्यम से महानता तक पहुँच सकता है।

अनिल ने उसे चमकती आँखों से देखा। पहली बार, उसने किसी ऐसे व्यक्ति को देखा जो शक्ति, दयालुता और अनुशासन की तरह दिखता था – सभी एक साथ। उस दिन, वह घर गया, एक पुरानी नोटबुक निकाली, और मोटे अक्षरों में लिखा:

“मैं एक दिन आईएएस अधिकारी बनूँगा। चाहे कुछ भी करना पड़े।”

उस पल से, सब कुछ बदल गया।

त्याग पर आधारित जीवन
अनिल ने और भी अधिक मेहनत से पढ़ाई शुरू कर दी। उसने वरिष्ठ छात्रों से किताबें उधार लीं, मुफ्त लाइब्रेरी कक्षाओं में भाग लेने के लिए प्रतिदिन 4 किलोमीटर पैदल चला और कुछ अतिरिक्त पैसे कमाने के लिए अपनी शामें झुग्गी में अन्य बच्चों को पढ़ाने में बिताईं। उसके माता-पिता, हालांकि अशिक्षित थे, उसके साथ खड़े रहे। उसके पिता अक्सर उसे गाइडबुक खरीदने के लिए भोजन छोड़ देते थे। उसकी माँ हर रात आँखों में आँसू के साथ प्रार्थना करती थी।

उनके पास न तो टेलीविजन था, न फ्रिज, न सोफा। लेकिन उनके पास कुछ और भी था: अपने बेटे पर भरोसा।

जब उनके दोस्त कारखानों में काम करने के लिए स्कूल छोड़कर चले गए, तो अनिल वहीं रहे। जब रिश्तेदारों ने उनका मज़ाक उड़ाया कि वे “बहुत बड़े सपने” देख रहे हैं, तो उन्होंने और भी ज़्यादा मेहनत से पढ़ाई की।

कक्षा 10 में उन्होंने अपने स्कूल में टॉप किया।

कक्षा 12 में उन्हें छात्रवृत्ति मिली।

और फिर, उन्होंने असंभव कर दिखाया- उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान की प्रवेश परीक्षा पास कर ली।

सपनों और संघर्षों का शहर
दिल्ली एक अलग दुनिया थी। गगनचुंबी इमारतें, मेट्रो, भीड़-भाड़ वाली सड़कें और पूरे भारत से हज़ारों महत्वाकांक्षी छात्र। अनिल ने मुखर्जी नगर में एक छोटा सा कमरा किराए पर लिया, दाल-चावल और सपनों पर जी रहे थे।

वे पढ़ाई करने के लिए सुबह 4 बजे उठ जाते थे। दिन में वे लेक्चर अटेंड करते थे और छोटे-मोटे काम करते थे- डेटा एंट्री, फ़्लायर्स बांटना, यहाँ तक कि टेबल साफ करना। रात में वे यूपीएससी (संघ लोक सेवा आयोग) परीक्षा की तैयारी करते थे।

यह कठिन था। बहुत कठिन।

वह अपने पहले प्रयास में असफल रहा।

वह अपने दूसरे प्रयास में असफल रहा।

लेकिन उसने हार नहीं मानी।

हर असफलता ने उसे और मजबूत बनाया। हर आंसू, हर अस्वीकृति, हर रात की नींद ने उसे और मजबूत बनाया। वह जानता था कि अगर वह सफल हुआ, तो वह सिर्फ अपना जीवन नहीं बदलेगा – वह अपने पूरे समुदाय का जीवन बदल देगा।

वह दिन जिसने सब कुछ बदल दिया
27 अप्रैल की सुबह, यूपीएससी के नतीजे घोषित किए गए।

अपना रोल नंबर टाइप करते समय अनिल के हाथ कांप रहे थे। इंटरनेट कैफे में सन्नाटा था।

“रोल नंबर: 242019 – चयनित। रैंक 45. भारतीय प्रशासनिक सेवा।”

वह स्क्रीन को घूरता रहा। उसका दिल जम गया। फिर वह फूट-फूट कर रोने लगा।

लोग चारों ओर इकट्ठा हो गए, ताली बजाते हुए और जयकार करते हुए। चाय की दुकान के मालिक ने उसे गले लगाया। उसके हॉस्टल के साथियों ने उसे अपने कंधों पर उठा लिया। उसका फोन लगातार बज रहा था। उसके माता-पिता, जिन्होंने अपना सब कुछ त्याग दिया था, बच्चों की तरह रो रहे थे।

ऑटो चालक का बेटा अनिल कुमार अब आईएएस अधिकारी बन गया है।

अपनी जड़ों की ओर लौटना
अनिल भूला नहीं कि वह कहाँ से आया है। उसकी पहली पोस्टिंग बिहार के एक ग्रामीण जिले में हुई थी, जहाँ उसने वंचित बच्चों की शिक्षा में सुधार के लिए काम किया। उसने अपने गाँव में एक निःशुल्क पुस्तकालय शुरू किया, एक कंप्यूटर केंद्र खोला और सप्ताहांत प्रेरक कक्षाएँ शुरू कीं।

उसने स्कूलों में भाषण देते हुए कहा:

“जीवन में आगे बढ़ने के लिए आपको समृद्ध पृष्ठभूमि की आवश्यकता नहीं है। आपको अपने अंदर एक जलती हुई आग, असफल होने का साहस और फिर से उठने की शक्ति की आवश्यकता है।”

उसकी कहानी अखबारों में छपी, पत्रिकाओं में छपी और सोशल मीडिया पर वायरल हुई।

लेकिन वह विनम्र बना रहा।

वह अभी भी उस चाय की दुकान पर जाता है जहाँ उसने काम किया था।

वह अभी भी हर सुबह अपनी माँ के पैर छूता है।

वह अभी भी कहता है, “मैं अभी शुरुआत कर रहा हूँ।”

सभी बच्चों के लिए संदेश
प्रिय युवा पाठकों, अनिल की कहानी सिर्फ़ सफलता के बारे में नहीं है – यह विश्वास के बारे में है।

यह आपके सपनों के लिए लड़ने के बारे में है, तब भी जब दुनिया आप पर हंसती है।

यह तब और अधिक मेहनत करने के बारे में है जब जीवन कठिन हो जाता है।

और यह कभी हार न मानने के बारे में है।

याद रखें, आपको कुछ बड़ा बनने के लिए महंगी किताबों या समृद्ध पृष्ठभूमि की आवश्यकता नहीं है। आपको समर्पण, निरंतरता और खुद पर विश्वास की आवश्यकता है।

हो सकता है कि आप आज गरीब हों।

हो सकता है कि आप संघर्ष कर रहे हों।

लेकिन अगर आप हर दिन सीखने, आगे बढ़ने, मुस्कुराते हुए लड़ने का फैसला करते हैं, तो कोई भी – यहाँ तक कि भाग्य भी – आपको रोक नहीं सकता।

क्योंकि सफलता इस बारे में नहीं है कि आप कहाँ से शुरू करते हैं।

यह इस बारे में है कि आप कितनी दूर तक जाने को तैयार हैं।

“वर्दी में सपने देखने वाला लड़का: Aarav का IPS बनने का सफ़र” || IPS Success Story

“वर्दी में सपने देखने वाला लड़का: Aarav का IPS बनने का सफ़र”
भारत के दिल में बसे एक छोटे से गाँव में, आरव नाम का एक लड़का रहता था। गाँव शांत था, हरे-भरे खेतों और कीचड़ भरी सड़कों से घिरा हुआ था, जहाँ बच्चे नंगे पाँव खेलते थे और बड़े-बुज़ुर्ग बरगद के पेड़ों के नीचे बैठकर कहानियाँ सुनाते थे। आरव का जन्म एक अमीर परिवार में नहीं हुआ था। उसके पिता एक डाकिया थे और उसकी माँ गाँव वालों के लिए कपड़े सिलती थी ताकि थोड़ा अतिरिक्त कमा सके। वे अमीर नहीं थे, लेकिन वे मूल्यों से समृद्ध थे – ईमानदारी, दयालुता और सपने।
आरव का पाँच साल की उम्र से ही एक सपना था – खाकी वर्दी पहनना और IPS अधिकारी बनना। उसे इस बारे में ज़्यादा जानकारी नहीं थी कि IPS अधिकारी क्या करते हैं, लेकिन उसे एक बरसात का दिन याद है जब एक पुलिस अधिकारी ड्यूटी पर उनके गाँव में आया था। वह अधिकारी बहुत ऊँचा खड़ा था, उसकी वर्दी साफ थी, आँखें केंद्रित थीं और लोग उसका बहुत सम्मान करते थे। बच्चे प्रशंसा में उसके पीछे-पीछे घूमते थे। उस दिन, आरव के दिल ने फुसफुसाया, “एक दिन, मैं उसके जैसा बनूँगा।” जैसे-जैसे वह बड़ा होता गया, उसका सपना और मजबूत होता गया। लेकिन यह सफर आसान नहीं था।
शुरुआती चुनौतियाँ
आरव अपने गाँव के सरकारी स्कूल में पढ़ता था। कक्षा में बेंच टूटी हुई थीं और ब्लैकबोर्ड टूटा हुआ था, लेकिन इससे वह नहीं रुका। वह हमेशा चमकती आँखों के साथ आगे की पंक्ति में बैठता था, हमेशा जिज्ञासु रहता था, हमेशा सवाल पूछता रहता था। बाकी ज़्यादातर बच्चे पढ़ाई में ज़्यादा दिलचस्पी नहीं रखते थे और उनमें से कई 8वीं या 10वीं के बाद पढ़ाई छोड़ देते थे। लेकिन आरव के दिल में एक आग थी।
हर दिन स्कूल के बाद, आरव अपने पिता को पत्र पहुँचाने में मदद करता था और अपनी माँ को सिलाई के काम के लिए धागा और कपड़ा छाँटने में मदद करता था। देर रात, जब पूरा गाँव सो जाता था, आरव मिट्टी के तेल का दीपक जलाकर बैठ जाता था और जो भी किताबें मिलतीं, उन्हें पढ़ता था। वह इतिहास, संविधान, प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानियों और भारतीय सरकार की संरचना के बारे में पढ़ता था। उसके पास इंटरनेट, मोबाइल या कोचिंग नहीं थी, लेकिन उसके पास लगन थी।
एक दिन, उसके शिक्षक श्री शर्मा ने ज्ञान के प्रति उसकी भूख देखी और उसे यूपीएससी परीक्षा के बारे में एक पुरानी अख़बार की कटिंग दी। आरव ने पहली बार इसके बारे में सुना था।

“सर, यह यूपीएससी क्या है?” आरव ने पूछा।

श्री शर्मा मुस्कुराए, “यह वह परीक्षा है जो आपको आईएएस, आईपीएस या आईएफएस अधिकारी बनने में मदद करेगी। यह आपके सपनों का द्वार है।”

आरव ने उस क्लिपिंग को खजाने की तरह संभाल कर रखा। उसने इसे अपने बिस्तर के बगल में दीवार पर चिपका दिया और हर दिन इसे पढ़ता था। उस पल से, उसका लक्ष्य स्पष्ट हो गया—वह यूपीएससी परीक्षा पास करेगा और आईपीएस अधिकारी बनेगा।

कॉलेज और बड़े सपने
10वीं के बाद आरव को शहर में पढ़ने के लिए स्कॉलरशिप मिल गई। यह उसका गांव से बाहर पहला मौका था। शहर शोरगुल वाला, तेज और विचलित करने वाला था, लेकिन आरव ने अपना ध्यान नहीं खोया। वह एक छोटे से छात्रावास के कमरे में रहता था, दूसरे छात्रों के साथ खाना खाता था और सार्वजनिक पुस्तकालय को अपने अध्ययन कक्ष के रूप में इस्तेमाल करता था।
कॉलेज में, वह शारीरिक रूप से फिट रहने और अनुशासन सीखने के लिए एनसीसी (राष्ट्रीय कैडेट कोर) में शामिल हो गया। वह सुबह 5 बजे उठता, प्रशिक्षण के लिए जाता, कक्षाओं में जाता और फिर देर रात तक पढ़ाई करता। उसके दोस्त फ़िल्में और मॉल जाते थे, लेकिन आरव को कानून, अपराध, न्याय और करंट अफेयर्स पर किताबें पढ़ने में मज़ा आता था। उसका पसंदीदा हीरो कोई फ़िल्म स्टार नहीं था – वह भारत की पहली महिला आईपीएस अधिकारी किरण बेदी थीं।
वह जानता था कि यूपीएससी परीक्षा के तीन चरण हैं- प्रारंभिक, मुख्य और साक्षात्कार। प्रतियोगिता कड़ी थी और हर साल लाखों छात्र इसके लिए आवेदन करते थे। लेकिन वह अपनी माँ की एक बात पर विश्वास करता था, जो हमेशा कहती थी, “अगर तुम्हारे इरादे नेक हैं और तुम्हारे प्रयास ईमानदार हैं, तो ब्रह्मांड भी तुम्हारी मदद करेगा।”
पहला प्रयास: असफलता
ग्रेजुएशन के बाद, आरव ने पहली बार यूपीएससी की परीक्षा दी। उसके पास कोई कोचिंग नहीं थी, कोई फैंसी किताबें नहीं थीं, बस सेल्फ स्टडी, पुराने प्रश्नपत्र और आत्मविश्वास था। उसने प्रीलिम्स पास किया, मेन्स में संघर्ष किया, लेकिन असफल रहा।
वह दिल टूट गया था।
वह रोया नहीं, लेकिन उसकी खामोशी ज़ोरदार थी। कई दिनों तक, उसने ज़्यादा बात नहीं की। उसने दीवार पर अपने सपनों के पोस्टर को देखा और खुद से सवाल किया। “शायद मैं इतना अच्छा नहीं हूँ… शायद मुझे हार मान लेनी चाहिए।”
लेकिन फिर, एक रात, उसके पिता उसके पास बैठे और कहा, “बेटा, सफलता उन लोगों को नहीं मिलती जो कभी नहीं गिरते। यह उन लोगों को मिलती है जो दस बार गिरते हैं लेकिन ग्यारह बार खड़े होते हैं। तुम असफल नहीं हुए-तुमने बस बेहतर प्रयास करना सीखा।”
उन शब्दों ने आरव को बहुत प्रभावित किया। उसने अपने आँसू पोंछे और नए दृढ़ संकल्प के साथ खड़ा हो गया।
दूसरा प्रयास: सुधार
इस बार, आरव ने अपनी गलतियों का विश्लेषण किया। उसने अपनी लेखनी में सुधार किया, समय प्रबंधन पर काम किया, मॉक टेस्ट के लिए मुफ़्त ऑनलाइन फ़ोरम में शामिल हुआ और दोस्तों के साथ साक्षात्कार का अभ्यास किया। उसने फिटनेस पर भी ध्यान दिया, यह जानते हुए कि एक IPS अधिकारी को मानसिक और शारीरिक रूप से मज़बूत होना चाहिए।
वह फिर से परीक्षा में शामिल हुआ।
इस बार, उसने अच्छे अंकों के साथ प्रीलिम्स पास किया। उसने आत्मविश्वास के साथ मेन्स की परीक्षा दी। फिर दिल्ली में साक्षात्कार का दौर आया।
वह अपनी सबसे अच्छी शर्ट पहने, शांत आँखों और हिम्मत से भरा दिल लिए UPSC साक्षात्कार कक्ष में गया। बोर्ड ने उससे कठिन सवाल पूछे- कानून, नैतिकता, राष्ट्रीय सुरक्षा, साइबर अपराध और 10वीं के बाद आरव को शहर में पढ़ने के लिए स्कॉलरशिप मिल गई। यह उसका गांव से बाहर पहला मौका था। शहर शोरगुल वाला, तेज और विचलित करने वाला था, लेकिन आरव ने अपना ध्यान नहीं खोया। वह एक छोटे से छात्रावास के कमरे में रहता था, दूसरे छात्रों के साथ खाना खाता था और पब्लिक लाइब्रेरी को अपने अध्ययन कक्ष के रूप में इस्तेमाल करता था। कॉलेज में, वह शारीरिक रूप से फिट रहने और अनुशासन सीखने के लिए एनसीसी (नेशनल कैडेट कॉर्प्स) में शामिल हो गया। वह सुबह 5 बजे उठता, ट्रेनिंग के लिए जाता, क्लास अटेंड करता और फिर देर रात तक पढ़ाई करता। उसके दोस्त मूवी और मॉल जाते थे, लेकिन आरव को कानून, अपराध, न्याय और करंट अफेयर्स पर किताबें पढ़ने में मज़ा आता था। उसका पसंदीदा हीरो कोई फिल्म स्टार नहीं था – वह भारत की पहली महिला आईपीएस अधिकारी किरण बेदी थी। वह जानता था कि यूपीएससी परीक्षा के तीन चरण होते हैं- प्रारंभिक, मुख्य और साक्षात्कार। प्रतियोगिता कड़ी थी और हर साल लाखों छात्र आवेदन करते थे। लेकिन वह अपनी माँ की हमेशा कही एक बात पर विश्वास करता था, “अगर आपके इरादे नेक हैं और आपके प्रयास ईमानदार हैं, तो ब्रह्मांड भी आपकी मदद करेगा।” पहला प्रयास: असफलता
ग्रेजुएशन के बाद, आरव ने पहली बार यूपीएससी की परीक्षा दी। उसके पास कोई कोचिंग नहीं थी, कोई फैंसी किताबें नहीं थीं, बस सेल्फ-स्टडी, पुराने प्रश्नपत्र और आत्मविश्वास था। उसने प्रीलिम्स पास किया, मेन्स में संघर्ष किया, लेकिन असफल रहा।
वह दिल टूट गया था।
वह रोया नहीं, लेकिन उसकी खामोशी ज़ोरदार थी। कई दिनों तक, उसने ज़्यादा बात नहीं की। उसने दीवार पर अपने सपनों के पोस्टर को देखा और खुद से सवाल किया। “शायद मैं इतना अच्छा नहीं हूँ… शायद मुझे हार मान लेनी चाहिए।”
लेकिन फिर, एक रात, उसके पिता उसके पास बैठे और कहा, “बेटा, सफलता उन लोगों को नहीं मिलती जो कभी नहीं गिरते। यह उन लोगों को मिलती है जो दस बार गिरते हैं लेकिन ग्यारह बार खड़े होते हैं। तुम असफल नहीं हुए – तुमने बस बेहतर प्रयास करना सीखा।”
उन शब्दों ने आरव को बहुत प्रभावित किया। उसने अपने आँसू पोंछे और नए दृढ़ संकल्प के साथ खड़ा हुआ।
दूसरा प्रयास: सुधार
इस बार, आरव ने अपनी गलतियों का विश्लेषण किया। उन्होंने अपनी लेखनी में सुधार किया, समय प्रबंधन पर काम किया, मॉक टेस्ट के लिए मुफ़्त ऑनलाइन फ़ोरम में शामिल हुए और दोस्तों के साथ इंटरव्यू का अभ्यास किया। उन्होंने फिटनेस पर भी ध्यान दिया, क्योंकि उन्हें पता था कि एक IPS अधिकारी को मानसिक और शारीरिक रूप से मज़बूत होना चाहिए।
वह फिर से परीक्षा में शामिल हुए।
इस बार, उन्होंने अच्छे अंकों के साथ प्रीलिम्स पास किया। उन्होंने आत्मविश्वास के साथ मेन्स की परीक्षा दी। फिर दिल्ली में इंटरव्यू राउंड आया।
वह अपनी सबसे अच्छी शर्ट पहनकर, शांत आँखों और हिम्मत के साथ UPSC इंटरव्यू रूम में गए। बोर्ड ने उनसे कठिन सवाल पूछे- कानून, नैतिकता, राष्ट्रीय सुरक्षा, साइबर अपराध और नेतृत्व पर। सदस्यों में से एक ने पूछा, “आप एक छोटे से गाँव से आते हैं। आप शहरी अपराध नियंत्रण में कैसे काम करेंगे?”
आरव ने जवाब दिया, “सर, जब कोई कम संसाधनों और कठिन परिस्थितियों वाले गाँव में जीवित रहना सीखता है, तो वह अनुकूलन करना, दबाव में शांत रहना और लोगों से आसानी से जुड़ना सीखता है। यही वह चीज़ है जिसकी पुलिसिंग को ज़रूरत होती है- ताकत, सहानुभूति और अनुकूलनशीलता।”
वे मुस्कुराए। वह भी मुस्कुराया।
परिणाम: एक सपना पूरा हुआ
महीनों बाद, परिणाम घोषित किया गया। आरव का नाम था।
एआईआर 68 – भारतीय पुलिस सेवा।
उसने यह कर दिखाया।
उसकी माँ गर्व से रो पड़ी। उसके पिता ने उसे चुपचाप गले लगा लिया। पूरे गाँव ने मिठाई और संगीत के साथ जश्न मनाया। वह लड़का जो कभी मिट्टी के तेल के दीपक के नीचे पढ़ता था, अब एक आईपीएस अधिकारी था। उसने वह वर्दी पहनी जिसका उसने वर्षों से सपना देखा था, और इस बार, अन्य बच्चे उसकी प्रशंसा में उसे देख रहे थे – ठीक वैसे ही जैसे वह कभी देखता था।
राष्ट्र की सेवा
आरव की यात्रा वर्दी के साथ समाप्त नहीं हुई। वह एक जिले में सहायक पुलिस अधीक्षक के रूप में तैनात था। उन्होंने सामुदायिक आउटरीच कार्यक्रम शुरू किए, गाँव के बच्चों को पढ़ाई के लिए प्रोत्साहित किया, महिलाओं को सुरक्षित महसूस करने में मदद की और भ्रष्टाचार और अपराध के खिलाफ़ कड़ी कार्रवाई की। वह न्याय में करुणा के साथ विश्वास करते थे।
उनकी एक पहल “पुलिस पाठशाला” शुरू करना था, जहाँ अधिकारी ग्रामीण स्कूलों में प्रेरक भाषण देते थे। वह बच्चों से कहते थे, “मैं आप में से एक हूँ। अगर मैं कर सकता हूँ, तो आप भी कर सकते हैं।”
धीरे-धीरे, जिस गाँव में कभी यूपीएससी के उम्मीदवार नहीं थे, वहाँ सपने देखने वाले लोग पैदा होने लगे। आरव ने सिर्फ़ अपनी ही ज़िंदगी नहीं बदली – उसने कई लोगों की ज़िंदगी बदल दी।

कहानी की सीख:
• बड़े सपने देखें – अगर आपका दिल उसे पूरा करने के लिए बहादुर है तो कोई भी सपना बड़ा नहीं होता।

कभी हार न मानें – असफलता अंत नहीं है; यह सिर्फ़ बेहतर वापसी की शुरुआत है।

अनुशासन और समर्पण – कम संसाधनों के साथ भी लगातार प्रयास से बड़ी चीज़ें हासिल की जा सकती हैं।

खुद पर विश्वास रखें – जब दुनिया आप पर शक करती है, तो आपका विश्वास आपकी ताकत बन जाता है।

• दूसरों को वापस दें – सच्ची सफलता एक बार ऊपर उठने के बाद दूसरों को ऊपर उठाने में निहित है।

नेतृत्व। सदस्यों में से एक ने पूछा, “आप एक छोटे से गाँव से आते हैं। आप शहरी अपराध नियंत्रण में कैसे काम करेंगे?” आरव ने जवाब दिया, “सर, जब कोई कम संसाधनों और कठिन परिस्थितियों वाले गाँव में जीवित रहना सीखता है, तो वह अनुकूलन करना, दबाव में शांत रहना और लोगों से आसानी से जुड़ना सीखता है। यही वह चीज है जिसकी पुलिसिंग को ज़रूरत होती है- ताकत, सहानुभूति और अनुकूलनशीलता।” वे मुस्कुराए। वह भी मुस्कुराया। परिणाम: एक सपना पूरा हुआ महीनों बाद, परिणाम घोषित किया गया। आरव का नाम था। AIR 68 – भारतीय पुलिस सेवा। उसने यह कर दिखाया था। उसकी माँ गर्व से रो पड़ी। उसके पिता ने उसे चुपचाप गले लगा लिया। पूरे गाँव ने मिठाइयों और संगीत के साथ जश्न मनाया। वह लड़का जो कभी मिट्टी के तेल के दीपक के नीचे पढ़ता था, अब एक IPS अधिकारी था। उसने वह वर्दी पहनी जिसका उसने सालों से सपना देखा था, और इस बार, दूसरे बच्चे उसकी प्रशंसा में देख रहे थे- ठीक वैसे ही जैसे वह कभी देखता था। राष्ट्र की सेवा करना
आरव की यात्रा वर्दी के साथ समाप्त नहीं हुई। वह एक जिले में सहायक पुलिस अधीक्षक के रूप में तैनात थे। उन्होंने सामुदायिक आउटरीच कार्यक्रम शुरू किए, गांव के बच्चों को पढ़ाई के लिए प्रोत्साहित किया, महिलाओं को सुरक्षित महसूस करने में मदद की और भ्रष्टाचार और अपराध के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की। वह न्याय और करुणा में विश्वास करते थे।
उनकी एक पहल “पुलिस पाठशाला” शुरू करना था, जहाँ अधिकारी ग्रामीण स्कूलों में प्रेरक भाषण देते थे। वह बच्चों से कहते थे, “मैं आप में से एक हूँ। अगर मैं यह कर सकता हूँ, तो आप भी कर सकते हैं।”
धीरे-धीरे, जिस गाँव में कभी यूपीएससी उम्मीदवार नहीं थे, वहाँ सपने देखने वाले लोग आने लगे। आरव ने न केवल अपना जीवन बदला – बल्कि उसने कई लोगों को बदल दिया।

कहानी की सीख:
• बड़े सपने देखें – अगर आपका दिल उसे पूरा करने के लिए पर्याप्त साहसी है तो कोई भी सपना बड़ा नहीं होता।
• कभी हार न मानें – असफलता अंत नहीं है; यह बेहतर वापसी की शुरुआत है।
• अनुशासन और समर्पण – कम संसाधनों के साथ भी लगातार प्रयास से बड़ी चीजें हासिल की जा सकती हैं।
• खुद पर विश्वास रखें – जब दुनिया आप पर संदेह करती है, तो आपका विश्वास आपकी ताकत बन जाता है।

• वापस दें – सच्ची सफलता एक बार उठने के बाद दूसरों को ऊपर उठाने में निहित है।

LearnKro.com आपके लिए आरव जैसी वास्तविक कहानियाँ लेकर आया है जो हर बच्चे और हर सपने देखने वाले को प्रेरित करती हैं। याद रखें, आपकी यात्रा कठिन हो सकती है, लेकिन दिल से, यह हमेशा इसके लायक है। सीखते रहें, विश्वास करते रहें।

कबाड़ से CEO तक: Aahan Iyer की अनकही कहानी || Success story

🔥 कबाड़ से सीईओ तक: Aahan Iyer की अनकही कहानी

“उड़ने के लिए आपको पंखों की ज़रूरत नहीं होती। आपको एक वजह की ज़रूरत होती है।”
— अहान अय्यर
अध्याय 1: खंडहरों के बीच जन्म
मुंबई के बाहर एक झुग्गी-झोपड़ी में, जहाँ मानसून के दौरान प्लास्टिक की छतें टपकती हैं और बिजली कटौती सूर्यास्त की तरह आम है, अहान अय्यर एक टूटे-फूटे घर में पैदा हुआ था। उसके पिता दो साल की उम्र से पहले ही चले गए थे, और उसकी माँ एक स्वेटशॉप में ₹3 प्रति पीस के हिसाब से कपड़े सिलती थी, जहाँ से स्याही और आँसुओं की गंध आती थी।
उनका घर? एक बिस्तर। एक बल्ब। और एक सपना: जीवित रहना।
पाँच साल की उम्र में, अहान नंगे पैर तीन किलोमीटर चलकर स्कूल जाता था। लेकिन क्योंकि उस स्कूल में हर दिन एक उबला हुआ अंडा और दो स्लाइस ब्रेड दी जाती थी।
“मैं बीजगणित सीखने नहीं गया था,” उसने बाद में कहा। “मैं इसलिए गया क्योंकि मुझे भूख लगी थी।”
अध्याय 2: पहली चिंगारी
12 साल की उम्र में, अहान को कबाड़खाने में एक टूटा हुआ स्मार्टफोन मिला। इसमें सिम कार्ड, बैटरी या बैक कवर नहीं था। लेकिन जब उन्होंने इसे अपने द्वारा बचाए गए USB केबल से जोड़ा, तो स्क्रीन एक बार झपका – एक मरते हुए जुगनू की तरह। उस रात, उन्होंने एक साइबर कैफ़े में YouTube वीडियो से सर्किट ठीक करना सीखा, जहाँ मालिक ने उन्हें 10 रुपये प्रति घंटे पर ब्राउज़ करने दिया। स्कूल के बाद हर दिन, वह ई-कचरे के ढेर में घूमता था, चिप्स, बोर्ड, बैटरी – कुछ भी इकट्ठा करता था। वह “स्क्रैप इंजीनियर” के रूप में जाना जाने लगा। 15 साल की उम्र तक, उसने कचरे से छह स्मार्टफोन फिर से बनाए। बिक्री के लिए नहीं – बल्कि सीखने के लिए। उसके कमरे में वाई-फाई नहीं था, लेकिन उसके दिमाग में पूरा सिग्नल था।

अध्याय 3: सबसे निचला बिंदु उसके 16वें जन्मदिन से ठीक पहले, त्रासदी हुई। उसकी माँ, थकी हुई और कम वेतन वाली, काम पर बेहोश हो गई। निदान: कार्डियक अरेस्ट। अस्पताल ने ₹1.2 लाख मांगे। उसके पास ₹620 थे। उन्होंने ऑनलाइन एक दिल को छू लेने वाला वीडियो पोस्ट किया – एक मंद स्ट्रीट लाइट के नीचे खड़े होकर, दुनिया से ईमानदारी से बात करते हुए: “मुझे सहानुभूति नहीं चाहिए। मुझे मदद चाहिए। अपने लिए नहीं। उस महिला के लिए जिसने मुझे अपने जीवन का हर धागा दिया।” यह वायरल हो गया। इंटरनेट ने 48 घंटों में सिर्फ़ ₹10 लाख ही नहीं जुटाए – इसने एक आंदोलन खड़ा कर दिया। लेकिन अहान ने एक पैसा भी बरबाद नहीं किया। अपनी माँ के ठीक होने के बाद, उन्होंने बचे हुए पैसे से अपना पहला लैपटॉप, एक सेकंड-हैंड सोल्डरिंग मशीन और एक छोटा सा किराए का कमरा खरीदा जिसकी छत से पानी नहीं टपकता था।

अध्याय 4: झुग्गियों से स्टार्टअप 17 साल की उम्र में, अहान ने “रीन्यू माइंड्स” की स्थापना की, एक माइक्रो-स्टार्टअप जहाँ उन्होंने स्कूल छोड़ने वाले बच्चों को काम पर रखा और उन्हें खराब इलेक्ट्रॉनिक्स की मरम्मत करने का प्रशिक्षण दिया। लैपटॉप, फ़ोन, टीवी – सभी को फिर से बनाया गया और बाज़ार की आधी कीमत पर बेचा गया। उनके स्टार्टअप ने सिर्फ़ गैजेट ही नहीं बनाए। इसने लोगों की ज़िंदगी को फिर से बनाया। 19 साल की उम्र तक, उनके पास 23 पूर्णकालिक कर्मचारी थे – सभी वंचित पृष्ठभूमि से थे – और उनका मासिक कारोबार ₹8 लाख था।
आहान ने तीन कंपनियों के निवेश प्रस्तावों को अस्वीकार कर दिया।
“मैं पैसे से आगे नहीं बढ़ना चाहता। मैं अर्थ से आगे बढ़ना चाहता हूँ।”

अध्याय 5: सफलता
एक बरसात की दोपहर, एक पुराने डेल लैपटॉप पर काम करते समय, आहान को संयुक्त राष्ट्र से एक ईमेल मिला।
उसका वीडियो – जिसने उसकी माँ को बचाया था – युवा नवाचार पर एक वैश्विक रिपोर्ट में इस्तेमाल किया गया था।
उन्होंने उसे बोलने के लिए जिनेवा आमंत्रित किया।
वह कभी हवाई जहाज़ पर नहीं चढ़ा था। उसके पास पासपोर्ट भी नहीं था।
लेकिन वह गया।
एक दोस्त से उधार लिए गए सूट में खड़े होकर, आहान ने ऐसा भाषण दिया कि प्रतिनिधियों की आँखें भर आईं।
“मैं ऐसी जगह से आया हूँ जहाँ सपने पेड़ों पर नहीं उगते – वे कूड़ेदानों में उगते हैं, तारों में लिपटे हुए। मुझे अपना भविष्य नहीं मिला। मैंने इसे बनाया – एक बार में एक टूटा हुआ हिस्सा।”
उसे खड़े होकर तालियाँ मिलीं।
अध्याय 6: विरासत की शुरुआत , 21 साल की उम्र तक, आहान ने स्क्रैपस्किल लॉन्च कर दिया था, जो आठ भारतीय भाषाओं में इलेक्ट्रॉनिक मरम्मत सिखाता है। अब इसके 2.5 मिलियन से ज़्यादा डाउनलोड हो चुके हैं और इसने हज़ारों बेरोज़गार युवाओं को रोज़ी-रोटी कमाने में मदद की है। उन्होंने “स्किल वैन” शुरू करने के लिए एनजीओ के साथ भागीदारी की – मोबाइल क्लासरूम जो बुनियादी उपकरण, मुफ़्त प्रशिक्षण और इंटरनेट के साथ ग्रामीण गांवों में जाते हैं।
2024 में, उन्हें फोर्ब्स एशिया 30 अंडर 30 में सूचीबद्ध किया गया था।
लेकिन जब उनसे पूछा गया कि उनकी सबसे बड़ी सफलता क्या थी, तो उन्होंने मुस्कुराते हुए अपनी माँ की नाश्ता बनाते हुए एक तस्वीर की ओर इशारा किया।
उन्होंने कहा, “वह मेरी ट्रॉफी है।”

💡 आहान की कहानी को क्या खास बनाता है?
• उन्होंने कभी सिस्टम को दोष नहीं दिया। उन्होंने इसे हैक कर लिया।
• वे स्क्रैप को अवसर के रूप में इस्तेमाल करते हुए आगे बढ़ते रहे।
• उन्होंने साबित किया कि बिना पहुँच के शिक्षा अन्याय है – और इसे हल किया।

🔑 अहान अय्यर की यात्रा से सबक
1. जो आपके पास है, उससे शुरुआत करें। भले ही वह कचरा हो – यह छिपे हुए खजाने की तरह है।
2. सिर्फ़ सफलता का पीछा न करें। उद्देश्य का पीछा करें। पैसा अर्थ का अनुसरण करता है।
3. जैसे-जैसे आप ऊपर उठते हैं, वैसे-वैसे आगे बढ़ते हैं। अहान की सफलता दूसरों के लिए सीढ़ी बन गई।

🧭 अंतिम शब्द
आज, अहान की कहानी पूरे भारत में कार्यशालाओं में पढ़ाई जाती है। उसकी कहानी किसी चमत्कार के बारे में नहीं है। यह सूक्ष्म निर्णयों के बारे में है – कोशिश करना, असफल होना और फिर से कोशिश करना।
और कहीं, अभी, एक बच्चा झुग्गी में एक टूटा हुआ फोन पकड़े हुए फुसफुसा रहा है:
“अगर उसने किया, तो मैं भी कर सकता हूँ।”