बहुत समय पहले, चाँदी सी चमकती रिवर रील नदी और बर्फ से ढके मूनस्टोन पहाड़ों के बीच बसा था एक अनदेखा गाँव — लिओरा। यहाँ के लोग सितारों से बातें करते थे और मानते थे कि दया, जादू से भी ज़्यादा ताकतवर होती है। हर रात, वे लालटेनों को आकाश में उड़ाते — रोशनी
के लिए नहीं, बल्कि अपनी दिल की मुरादें हवा को सौंपने के लिए। इसी गाँव में रहती थी एक छोटी बच्ची — एलीना। उसके बाल कौवे के पंख जैसे काले थे, और कल्पनाएँ समुद्र से भी गहरी। उसके पास पुराने कपड़े और उधार की किताबें थीं, मगर ख्वाब… एकदम नए।
एलीना अपने दादा डारो के साथ रहती थी — गाँव के मशहूर लालटेन निर्माता। वे लालटेनों को चाँदी के रेशों, सितारों की स्याही और धीरे से फुसफुसाई गई इच्छाओं से बनाते। हर बच्चा मानता था कि डारो की लालटनें बादलों से भी ऊँचा उड़ सकती हैं। एक दिन, एलीना ने पूछा, “दादा, हमारी लालटनें कभी वापस क्यों नहीं आतीं?”
डारो मुस्कराए, “क्योंकि कुछ इच्छाएँ उड़ती हैं तब तक… जब तक उन्हें वो न मिल जाए जिसकी उन्हें तलाश होती है।” मगर एलीना केवल ‘शायद’ पर नहीं जीती थी। उसे उत्तर चाहिए था।
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