भूमिका: एक टूटी खिड़की से शुरू हुआ सपना || Story in Hindi || Moral Story

छोटे शहर बरेली के महिला सुधारगृह में एक बच्ची का जन्म हुआ — माँ का नाम सुनीता और बच्ची का नाम रखा गया अंजलि। जन्म से ही उसका जीवन “सजा” जैसा महसूस होता था, एक ऐसी जगह जहाँ दीवारें ऊँची थीं और सपने छोटे। जेल की दीवारों के भीतर पली अंजलि को बचपन में ही समाज के तिरस्कार का सामना करना पड़ा।

सुनीता पढ़ी-लिखी नहीं थी, लेकिन उसने फै📷सला किया कि अंजलि को कभी भी यह महसूस न हो कि वह किस माहौल में पली-बढ़ी है। वह हमेशा कहती, “कांच के पीछे भी रौशनी आ सकती है, बस उसे देखने की हिम्मत होनी चाहिए।”

🎒 बचपन की चुनौतियाँ: परछाइयों में उजाला ढूँढना अंजलि जब 6 साल की हुई, तब उसे जेल से बाहर सरकारी स्कूल में दाखिला मिल गया — एक NGO की मदद से। वहाँ बच्चों ने उसका नाम सुनकर खुसुर-पुसुर शुरू कर दी: “ये तो जेल से आई है…” “इसकी माँ ने हत्या की है…” “इससे दोस्ती करोगे तो बदनाम हो जाओगे…”

अंजलि को यह बातें चुभतीं, पर सुनीता की एक बात उसे हमेशा याद रहती — “तू उड़ सकती है, ये दुनिया तुझमें ही तो है।” वह किताबों में खुद को खो देती। विज्ञान की किताबें उसकी सबसे प्यारी दोस्त थीं।

उसे तारों, ग्रहों और रॉकेट्स के बारे में पढ़ना बेहद रोमांचक लगता। स्कूल की साइंस फेयर में जब उसने अपने पहले वोल्टाज डिवाइडर सर्किट का मॉडल दिखाया — उसे कोई पुरस्कार नहीं मिला, लेकिन एक सरकारी स्कूल टीचर, मिसेज मल्होत्रा, उसकी प्रतिभा से चौंक गईं।

सपनों का विस्तार: अंतरिक्ष की ओर पहला क़दम मिसेज मल्होत्रा अंजलि को स्कूल के बाद खुद पढ़ाने लगीं। उन्होंने उसे विज्ञान की नई किताबें दीं, TED talks दिखाए और बच्चों के लिए ISRO की कार्यशालाओं की जानकारी दिलवाई। अंजलि के भीतर आग लग चुकी थी।

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