सच्चाई का मूल्य
learnkro.com– छोटे से गाँव सुदीपुर में एक गरीब लड़का रहता था – उसका नाम था अर्जुन। उसका परिवार खेती-किसानी करके मुश्किल से अपना गुज़ारा करता था। पढ़ने में तेज़, लेकिन हालात के चलते स्कूल अक्सर छोड़ना पड़ता। पर अर्जुन ने कभी भी अपनी मेहनत और ईमानदारी से समझौता नहीं किया।
गाँव के एक कोने में एक पुराना स्कूल था, जहाँ मास्टरजी रामप्रसाद पढ़ाया करते थे। उन्होंने अर्जुन की लगन देखी और बिना फीस के उसे पढ़ाने लगे। अर्जुन पढ़ाई में दिन-ब-दिन आगे बढ़ता गया। किताबें पुरानी मिलतीं, कपड़े फटे होते, पर आँखों में सपने चमकते।
एक दिन गाँव में खबर फैली कि शहर के एक बड़े स्कूल में छात्रवृत्ति (स्कॉलरशिप) की परीक्षा होगी – जिसे पास करने पर शहर में मुफ्त पढ़ाई और रहने की सुविधा मिलेगी। अर्जुन के चेहरे पर उम्मीद की एक चमक आ गई। रामप्रसाद जी ने कहा, “बेटा, मेहनत से मत घबराना। अवसर मिले तो उसे दोनों हाथों से पकड़ना।”
अर्जुन ने जी-जान लगाकर परीक्षा की तैयारी शुरू कर दी।
परीक्षा का दिन आया। अर्जुन को पास के कस्बे में परीक्षा देने जाना था। माँ ने उसका बस्ता ठीक किया, और अपनी बचत में से तीन रुपए उसके हाथ पर रख दिए—सिर्फ आने-जाने के किराए भर के लिए।
बस स्टैंड तक पैदल चलकर अर्जुन समय पर पहुँचा। परीक्षा कक्ष में सब बच्चे महँगे कपड़ों और किताबों के साथ आए थे। अर्जुन थोड़ा सहमा, लेकिन मन में विश्वास था।
परीक्षा शुरू हुई।
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कुछ ही मिनट बाद अर्जुन को लगा कि उसके बगल वाला लड़का बार-बार उसे देखने की कोशिश कर रहा है। थोड़ी देर में उसने एक पुर्जा निकालकर चुपचाप अर्जुन की तरफ सरकाया।
“तू भी देख ले, पूरे उत्तर हैं,” उसने फुसफुसाकर कहा।
अर्जुन ने एक बार उस पुर्जे को देखा, फिर अपनी उत्तर पुस्तिका। फिर हल्की मुस्कान के साथ उस पुर्जे को वापस लौटा दिया।
वह लड़का झुंझलाकर बोला, “तू बेवकूफ है! पास नहीं होगा।”
लेकिन अर्जुन का मन शांत था।
परीक्षा के बाद वह चुपचाप अपने घर लौट आया। मन में थोड़ा डर भी था – क्या वह वाकई पास हो पाएगा? शहर जाना उसका सपना था, पर उसका रास्ता इतना आसान नहीं था।
तीन हफ्ते बाद शहर के स्कूल से एक पत्र आया – अर्जुन को छात्रवृत्ति मिल गई थी। वह प्रथम स्थान पर था।
पूरा गाँव खुशियाँ मना रहा था। माँ की आँखों में आँसू थे – गर्व के आँसू।
अर्जुन शहर गया। स्कूल सुंदर था, सारी सुविधाएँ थीं, और पढ़ाई का स्तर काफी ऊँचा।
कुछ महीने बीते। एक दिन स्कूल के प्रधानाचार्य ने सब छात्रों से कहा, “हमें एक प्रतिनिधि चाहिए जो अंतर-विद्यालय विज्ञान प्रतियोगिता में स्कूल का नेतृत्व करे।”
कई नाम आए, लेकिन चयन हुआ अर्जुन का।
प्रतियोगिता के लिए छात्रों को समूहों में बांटा गया। अर्जुन के समूह में वही लड़का भी था जो उस दिन परीक्षा में नकल करा रहा था — नाम था रोहन।
अर्जुन उसे देखकर थोड़ा चौंका, लेकिन कुछ बोला नहीं। रोहन को शर्मिंदगी हुई, पर अर्जुन ने उससे कभी कटुता नहीं दिखाई। उन्होंने साथ मिलकर परियोजना पर काम किया।
प्रतियोगिता में उनके समूह ने पहला स्थान हासिल किया। मीडिया में अर्जुन और रोहन की जोड़ी की चर्चा हुई।
एक इंटरव्यू में जब पत्रकार ने अर्जुन से पूछा, “क्या कभी आपने अनुचित रास्ते अपनाने की सोची?”
अर्जुन मुस्कराया, “सच्चाई एक मशाल की तरह होती है – रास्ता कठिन हो सकता है, लेकिन उजाला वही देती है।”
रोहन, जो पास ही बैठा था, भावुक हो गया। उसने मंच पर ही कहा, “मैं कभी अर्जुन को छोटा समझता था। लेकिन आज जान गया हूँ कि ईमानदारी ही असली ताकत है। वह मेरा मार्गदर्शक बन गया है।”
अर्जुन की कहानी धीरे-धीरे राज्य स्तर तक पहुँची। उसे विभिन्न मंचों पर आमंत्रित किया जाने लगा। उसने कभी भी अपनी सादगी या विनम्रता नहीं छोड़ी।
कुछ वर्षों बाद, अर्जुन ने इंजीनियरिंग में टॉप किया और विदेश से शोध कार्य करने का प्रस्ताव मिला। लेकिन उसने विदेश जाने से पहले एक वादा निभाया — उसने अपने गाँव सुदीपुर में एक आधुनिक स्कूल की स्थापना की, जहाँ कोई बच्चा सिर्फ पैसे के अभाव में अपनी पढ़ाई न छोड़े।
स्कूल का नाम रखा गया – “सत्यदीप विद्यालय”।
आज अर्जुन जहाँ भी जाता है, उसके नाम से पहले एक उपमा लगती है – “ईमानदारी का प्रतीक”।
कहानी की सीख:
ईमानदारी हमेशा कठिन हो सकती है, लेकिन अंत में वही सबसे मूल्यवान होती है।