नारद मुनि और भगवान जगन्नाथ: एक अद्भुत लीला की कहानी || Story in hindi || Magical Story

नारद मुनि और भगवान जगन्नाथ: एक अद्भुत लीला की कहानी, Story in Hindi 

 

Lord Jagannath
Lord Jagannath story

learnkro.com– बहुत समय पहले की बात है। एक दिन नारद मुनि भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं का स्मरण कर रहे थे। वे सोचने लगे, “काश! यह दिव्य रूप और लीलाएं पृथ्वी पर सभी भक्तों को साक्षात देखने को मिलें।” इसी भावना से वे द्वारका पहुँचे, जहाँ श्रीकृष्ण, बलराम और सुभद्रा माता एकांत में माता रोहिणी से ब्रज की लीलाएं सुन रहे थे।

सुभद्रा जी द्वार पर पहरा दे रही थीं, लेकिन कथा इतनी भावविभोर थी कि वे भी उसमें खो गईं। तभी श्रीकृष्ण और बलराम भी वहाँ आ पहुँचे और कथा सुनने लगे। तीनों के चेहरे पर अद्भुत भाव थे—आँखें बड़ी, हाथ स्थिर, और मुख खुला हुआ। तभी नारद मुनि वहाँ पहुँचे और यह दृश्य देखकर मंत्रमुग्ध हो गए।

नारद जी ने भगवान से प्रार्थना की, “हे प्रभु! यह रूप इतना अनुपम है, कृपया इसे कलियुग में प्रकट कीजिए ताकि आपके भक्त इसे देख सकें।” श्रीकृष्ण मुस्कराए और बोले, “तथास्तु! मैं इस रूप में पुरी में प्रकट होऊँगा, जहाँ राजा इंद्रद्युम्न मेरी मूर्ति की स्थापना करेंगे।”

बाद में, राजा इंद्रद्युम्न को स्वप्न में यह आदेश मिला और उन्होंने समुद्र किनारे एक दिव्य लकड़ी से भगवान जगन्नाथ, बलराम और सुभद्रा की मूर्तियाँ बनवाईं। मूर्तियाँ अधूरी थीं—बिना हाथ-पैर के—but यही उनका दिव्य रूप था, जो उस भावावस्था को दर्शाता है जब वे ब्रज की लीलाओं में लीन थे।


यह कथा न केवल भगवान के प्रेम और लीलाओं की गहराई को दर्शाती है, बल्कि यह भी सिखाती है कि सच्ची भक्ति में रूप की नहीं, भाव की प्रधानता होती है।

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