भगवान जगन्नाथ की पूरी कथा और महत्व || Magical Story

भगवान जगन्नाथ की पूरी कथा और महत्व

भगवान जगन्नाथ

learnkro.com -भगवान जगन्नाथ हिंदू धर्म के सबसे पूजनीय देवताओं में से एक हैं, जिनकी मुख्य रूप से पुरी, ओडिशा में पूजा की जाती है। उनकी कथा हिंदू शास्त्रों, लोककथाओं और परंपराओं में गहराई से समाई हुई है, जो उन्हें भारतीय आध्यात्मिकता में एक विशिष्ट और रहस्यमय व्यक्तित्व बनाती है।

1. भगवान जगन्नाथ की उत्पत्ति और पौराणिक कथा

दिव्य अवतार

स्कंद पुराणब्रह्म पुराण और जगन्नाथ चरितामृत के अनुसार, भगवान जगन्नाथ, भगवान विष्णु (या कृष्ण) का ही एक रूप हैं। उनकी उत्पत्ति से जुड़ी कई कथाएँ प्रचलित हैं:

क) राजा इंद्रद्युम्न की कथा

  • मालवा के एक धर्मपरायण राजा इंद्रद्युम्न ने स्वप्न में देखा कि ओडिशा के जंगलों में एक रहस्यमय नील माधव (नीले रंग के विष्णु) की पूजा होती है।

  • उन्होंने एक ब्राह्मण पुजारी विद्यापति को उस देवता को ढूंढने भेजा। विद्यापति ने एक आदिवासी लड़की ललिता से विवाह कर लिया, जिसके पिता विश्वावसु को नील माधव के गुप्त स्थान का पता था।

  • काफी प्रयासों के बाद विद्यापति ने नील माधव को खोज लिया, लेकिन दिव्य शक्ति के कारण उसकी आँखों की रोशनी चली गई।

  • बाद में राजा इंद्रद्युम्न स्वयं ओडिशा पहुँचे, लेकिन नील माधव गायब हो चुके थे। तब एक आकाशवाणी हुई कि वे एक भव्य मंदिर बनवाएँ और लकड़ी की मूर्ति स्थापित करें।

  • राजा ने देवशिल्पी विश्वकर्मा को मूर्तियाँ बनाने का आदेश दिया। विश्वकर्मा ने शर्त रखी कि जब तक वह काम पूरा न कर ले, कोई उन्हें परेशान न करे।

  • लेकिन राजा ने धैर्य खो दिया और समय से पहले दरवाज़ा खोल दिया। इस कारण मूर्तियाँ अधूरी रह गईं (इसीलिए जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियों के हाथ-पैर नहीं हैं और आँखें बड़ी-बड़ी हैं)।

  • अंततः जगन्नाथ (कृष्ण), बलभद्र (बलराम) और सुभद्रा (उनकी बहन) की मूर्तियों को पुरी के जगन्नाथ मंदिर में स्थापित किया गया।

ख) कृष्ण की लीलाओं से संबंध

  • एक अन्य कथा के अनुसार, जगन्नाथ का संबंध द्वारका में कृष्ण के अंतिम समय से है।

  • कृष्ण के देह त्यागने के बाद उनके शरीर का दाह-संस्कार किया गया, लेकिन उनका हृदय जलने से बच गया। इसे एक लकड़ी के बक्से में रखकर समुद्र में बहा दिया गया, जो पुरी पहुँचकर दारुब्रह्म (जगन्नाथ की लकड़ी की मूर्ति) में बदल गया।

ग) आदिवासी संबंध (सवार मूल)

  • कुछ विद्वानों का मानना है कि जगन्नाथ मूल रूप से सबर जनजाति के देवता थे, जिन्हें बाद में हिंदू धर्म में समाहित कर लिया गया।

  • यही कारण है कि उनका रूप पारंपरिक हिंदू देवताओं से भिन्न है।

2. भगवान जगन्नाथ का अनोखा स्वरूप

पारंपरिक हिंदू देवताओं से अलग, जगन्नाथ की मूर्ति लकड़ी (नीम या दारु) की बनी होती है और इसमें निम्न विशेषताएँ हैं:

  • बड़ी गोल आँखें (सर्वज्ञता का प्रतीक)

  • हाथ-पैर नहीं (निराकार, सर्वव्यापी स्वरूप का प्रतीक)

  • लाल और काले रंग (सूर्य और पृथ्वी का प्रतीक)

उनके साथ पूजे जाते हैं:

  • बलभद्र (बलराम) – उनके बड़े भाई (सफेद रंग)

  • सुभद्रा – उनकी बहन (पीला रंग)

  • सुदर्शन चक्र – दिव्य अस्त्र (एक अलग देवता के रूप में)

3. जगन्नाथ मंदिर, पुरी

  • 12वीं शताब्दी में राजा अनंतवर्मन चोडगंग देव द्वारा बनवाया गया।

  • चार धाम तीर्थयात्रा स्थलों में से एक।

  • मंदिर के ऊपर लगा ध्वज हमेशा हवा की विपरीत दिशा में लहराता है

  • मंदिर की रसोई (आनंद बाजार) में महाप्रसाद बनता है, जिसे दिव्य भोजन माना जाता है।

4. रथ यात्रा (चारित्रिक महोत्सव)

  • सबसे प्रसिद्ध त्योहार, जो हर साल जून/जुलाई में मनाया जाता है।

  • तीन विशाल रथों में देवताओं को बिठाकर निकाला जाता है:

    • नंदीघोष (जगन्नाथ का रथ – 45 फीट ऊँचा, 16 पहिए)

    • तालध्वज (बलभद्र का रथ – 44 फीट ऊँचा, 14 पहिए)

    • दर्पदलन (सुभद्रा का रथ – 43 फीट ऊँचा, 12 पहिए)

  • लाखों भक्त रथों को जगन्नाथ मंदिर से गुंडिचा मंदिर (3 किमी की दूरी) तक खींचते हैं।

  • यह त्योहार कृष्ण के गोकुल से मथुरा जाने का प्रतीक है।

5. रहस्य और मान्यताएँ

  • मंदिर के शिखर पर लगा सुदर्शन चक्र पुरी के किसी भी कोने से सीधा दिखाई देता है।

  • मंदिर के ऊपर से कोई पक्षी नहीं उड़ता।

  • प्रसाद (महाप्रसाद) कभी कम नहीं पड़ता, चाहे जितने भी भक्त हों।

  • हर 12-19 साल में नवकलेबर अनुष्ठान होता है, जिसमें पुरानी मूर्तियों को दफना दिया जाता है और एक पवित्र नीम के पेड़ से नई मूर्तियाँ बनाई जाती हैं।

6. विभिन्न परंपराओं में जगन्नाथ

  • वैष्णव परंपरा: कृष्ण/विष्णु का रूप माना जाता है।

  • बौद्ध धर्म: कुछ मानते हैं कि जगन्नाथ मूलतः बौद्ध देवता थे।

  • जैन धर्म: तीर्थंकर से जोड़कर देखा जाता है।

  • आदिवासी मान्यताएँ: सर्वोच्च आदिवासी देवता के रूप में पूजे जाते हैं।

7. दार्शनिक महत्व

  • जगन्नाथ सार्वभौमिक प्रेम और समानता के प्रतीक हैं—उनका मंदिर सभी जाति और धर्म के लोगों के लिए खुला है।

  • उनका निराकार रूप ईश्वर की अवर्णनीयता को दर्शाता है।

निष्कर्ष

भगवान जगन्नाथ केवल एक देवता नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक और आध्यात्मिक घटना हैं, जो भक्ति, एकता और दिव्य रहस्य का प्रतीक हैं। उनकी पूजा धार्मिक सीमाओं से परे है, जिस कारण वे भारत के सबसे लोकप्रिय देवताओं में से एक हैं।

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