“ईमानदारी की झील: एक लकड़हारे की सच्ची जीत
अध्याय 1: गाँव का लकड़हारा
Learnkro.com– बहुत समय पहले भारत के एक छोटे, हरे-भरे गाँव में अर्जुन नाम का एक गरीब लकड़हारा रहता था। उसका जीवन सरल था, पर वह बहुत मेहनती और सच्चा इंसान था। हर सुबह सूरज के साथ उठकर, वह अपना पुराना कुल्हाड़ी लेकर पास के जंगल में पेड़ काटने चला जाता, जिससे लकड़ियाँ इकट्ठी करके बाजार में बेच सके। अर्जुन की पत्नी राधा और उसका छोटा बेटा गोपाल ही उसका परिवार थे।
अर्जुन को अपनी गरीबी का कभी दुःख नहीं हुआ क्योंकि उसके पास आत्मसम्मान और ईमानदारी थी।
अध्याय 2: संकट की घड़ी
एक दिन गर्मियों की दोपहर थी। अर्जुन जंगल में पेड़ काट रहा था। वह बहुत थक गया था, लेकिन काम पूरा करना चाहता था। एक बड़ी सूखी डाल काटते वक़्त उसकी कुल्हाड़ी का हैंडल पसीने की वजह से फिसल गया और कुल्हाड़ी उछलकर पास की गहरी झील में जा गिरी।
अर्जुन चौक पड़ा। वह झील के किनारे भागा, लेकिन झील इतनी गहरी और साफ़ थी कि कुल्हाड़ी का नामोनिशान भी नज़र नहीं आया। वह झील के किनारे बैठकर अपने सिर पर हाथ रखकर रोने लगा। “हे भगवान! अब मैं क्या करूँगा? कुल्हाड़ी के बिना तो मेरा काम ही नहीं चलेगा!”
अध्याय 3: परी का प्रकट होना
अर्जुन की ईमानदारी और उसकी सच्चाई से प्रभावित होकर झील के पानी में लहरें उठीं, और अचानक एक तेज़ सुनहरा प्रकाश फैला। उस प्रकाश से एक सुंदर परी प्रकट हुई। उसके माथे पर चाँद-सा तेज़ था और आवाज़ एक गीत की तरह मधुर।
परी बोली, “अर्जुन, मैंने तुम्हारी पुकार सुनी है। तुम परेशान क्यों हो?”
अर्जुन आश्चर्य में डूबा था, पर उसने घबराए बिना कहा, “हे देवी, मेरी कुल्हाड़ी इस झील में गिर गई है। वही मेरी रोज़ी-रोटी का सहारा थी। अब मैं अपने परिवार का पेट कैसे पालूँगा?”
परी मुस्कराई। “चिंता मत करो। मैं तुम्हारी सहायता करूँगी,” कहकर वह झील में डुबकी लगाई।
अध्याय 4: परी की परीक्षा
परी झील से बाहर आई तो उसके हाथ में एक सोने की कुल्हाड़ी थी। उसने चमकदार कुल्हाड़ी अर्जुन को दिखाते हुए पूछा, “क्या यह तुम्हारी कुल्हाड़ी है?”
अर्जुन ने इधर-उधर देखा और फिर धीरे से बोला, “नहीं देवी, ये मेरी कुल्हाड़ी नहीं है। मेरी कुल्हाड़ी तो लोहे की पुरानी-सी है।”
परी फिर झील में गई और इस बार वह चाँदी की कुल्हाड़ी लेकर आई। उसने वही सवाल दोहराया।
अर्जुन ने फिर सिर हिलाते हुए मना किया, “नहीं देवी, यह भी मेरी कुल्हाड़ी नहीं है।”
अब परी तीसरी बार झील में उतरी और इस बार उसने पुरानी, जंग लगी लोहे की कुल्हाड़ी बाहर निकाली।
अर्जुन की आँखों में चमक आ गई। “हाँ! यही है मेरी कुल्हाड़ी! यही मेरी साथी है वर्षों से।”
अध्याय 5: पुरस्कार
परी बहुत प्रसन्न हुई। उसने मुस्कराते हुए कहा, “अर्जुन, तुम्हारी ईमानदारी ने मेरा हृदय छू लिया। ऐसे लोग आजकल बहुत कम मिलते हैं। इसलिए मैं तुम्हें तुम्हारी कुल्हाड़ी के साथ-साथ ये सोने और चाँदी की कुल्हाड़ियाँ भी उपहार में देती हूँ।”
अर्जुन ने हाथ जोड़कर धन्यवाद दिया और खुशी से झूमता हुआ घर लौट आया। उसकी पत्नी राधा और बेटा गोपाल बहुत खुश हुए। वह अब न केवल मेहनत करता था, बल्कि उसकी ईमानदारी का फल भी मिल गया था।
अध्याय 6: लालच का परिणाम
गाँव में अर्जुन की कहानी जंगल की आग की तरह फैल गई। सभी लोग उसके गुण गा रहे थे। लेकिन एक और लकड़हारा — नाम था रघु — यह सब सुनकर बहुत जल गया।
रघु ने सोचा, “अगर मैं भी उसी झील में जाकर झूठ बोल दूँ कि मेरी कुल्हाड़ी गिर गई है, तो मुझे भी सोने-चाँदी की कुल्हाड़ी मिल जाएगी!”
अगले दिन वह अपने लकड़ी के काम से पहले झील के किनारे गया। उसने जानबूझकर अपनी सस्ती कुल्हाड़ी झील में फेंकी और वहीं बैठकर नकली रोने लगा।
परी फिर से प्रकट हुई। उसने वही सवाल पूछा। रघु ने झूठ-मूठ दुःख जताया।
परी झील में गई और जब सोने की कुल्हाड़ी निकाली, तो रघु ने तुरंत कहा, “हाँ! यही मेरी कुल्हाड़ी है!”
परी का चेहरा गंभीर हो गया। उसने कड़ी आवाज़ में कहा, “तुम झूठ बोलते हो। तुम लालच में अंधे हो गए हो। इसलिए तुम्हें न तुम्हारी असली कुल्हाड़ी मिलेगी, और न ही इनाम।”
इतना कहकर परी और कुल्हाड़ियाँ दोनों गायब हो गईं। अब रघु के पास न कोई कुल्हाड़ी थी, और न कोई भरोसा।
अध्याय 7: गाँव को सबक
यह बात भी पूरे गाँव में फैल गई। अब गाँव के बच्चे भी यह बात दोहराते फिरते:
“सच बोलो, सच्चा बनो,
झूठ और लालच से दूर रहो!”
गाँव के बड़े बुज़ुर्ग भी अर्जुन को आदर्श मानने लगे। अर्जुन अपनी साधारण सी ज़िंदगी में, अब और भी खुश रहने लगा क्योंकि अब लोग उसकी ईमानदारी का सम्मान करते थे।
नैतिक शिक्षा:
ईमानदारी एक ऐसा गुण है जो न केवल दूसरों का भरोसा जीतता है, बल्कि जीवन में सच्ची सफलता और शांति भी देता है। लालच और झूठ चाहे पलभर के लिए लुभावने लगें, लेकिन उनका अंत हमेशा नुकसानदायक होता है।