सपनों की उड़ान
learnkro.com– बिहार के एक छोटे से गांव भवानीपुर में एक लड़की रहती थी—अंजलि कुमारी। उसका परिवार अमीर नहीं था, लेकिन उनके इरादे मजबूत थे। उसके पिता एक छोटे किसान थे, जो दिन-रात एक एकड़ ज़मीन पर मेहनत करते थे। उसकी मां सिलाई करके घर चलाने में मदद करती थीं। अंजलि के दो छोटे भाई-बहन थे, और एक उम्र से बड़ी जिम्मेदारी उसके कंधों पर थी।
लेकिन अंजलि अलग थी। उसकी आंखों में कुछ खास चमक थी, कुछ बड़ा करने की आग थी। जब वह सिर्फ 10 साल की थी, उसने तय किया:
“एक दिन मैं वर्दी पहनूंगी… किसी की सेवा करने नहीं, बल्कि देश की सेवा करने।”
उसका सपना था: IAS ऑफिसर बनना।
सपने की शुरुआत
अंजलि का स्कूल एक टूटी-फूटी सरकारी इमारत था, जिसमें ना बिजली थी, ना साफ पीने का पानी। बच्चे ज़मीन पर बैठते थे, और कई बार टीचर ही नहीं आते थे। उसके कई दोस्त कक्षा 6-7 के बाद पढ़ाई छोड़ चुके थे। लेकिन अंजलि का हौसला कायम रहा।
वो अपने चचेरे भाई से शहर की पुरानी किताबें मांग कर पढ़ती थी। रात को ढिबरी के नीचे बैठकर पढ़ाई करती थी।
एक दिन गांव में एक अफसर आए—सफेद एंबेसडर गाड़ी में, गार्ड्स के साथ। पूरा गांव देखने के लिए इकट्ठा हो गया। अंजलि हैरान थी—इतना सम्मान, इतनी शक्ति!
रात को उसने पिता से पूछा, “पापा, ये कौन थे?”
पिता बोले, “ये जिलाधिकारी थे। IAS अफसर। बहुत बड़ा एग्जाम पास करके बनते हैं।”
उस दिन अंजलि को अपना रास्ता मिल गया।
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संघर्षों की शुरुआत
जैसे-जैसे अंजलि बड़ी होती गई, चुनौतियां भी बढ़ती गईं। 10वीं में पढ़ाई के साथ उसे खेत में भी हाथ बंटाना पड़ता, घर का काम भी करना होता। लेकिन किताबें उसका साथ कभी नहीं छोड़ती थीं।
10वीं बोर्ड में उसने 87% अंक लाकर गांव में नाम रोशन कर दिया। स्कूल के प्रधानाचार्य ने कहा, “ये लड़की भवानीपुर की शान बनेगी।”
पर आगे की पढ़ाई के लिए स्कूल 10 किलोमीटर दूर था। उसके पास साइकिल नहीं थी, तो वो पैदल जाती थी—बारिश हो या धूप।
एक निर्णायक मोड़
12वीं की परीक्षा में अंजलि ने 92% अंक हासिल किए। अब वो पटना यूनिवर्सिटी में दाखिला चाहती थी। लेकिन खर्चा?
पिता बोले, “बेटा, हमारे पास इतने पैसे नहीं हैं।”
अंजलि बोली, “मैं ट्यूशन पढ़ा लूंगी… बस जाने दीजिए, पापा।”
वो पटना शिफ्ट हो गई—तीन लड़कियों के साथ एक कमरा शेयर करती थी। सुबह कॉलेज, शाम को ट्यूशन, और वीकेंड पर झाड़ू-पोंछा करती थी।
उसने B.A. में पॉलिटिकल साइंस ली और साथ ही UPSC की तैयारी शुरू कर दी।
UPSC की शुरुआत
UPSC दुनिया के सबसे कठिन परीक्षाओं में से एक है। लाखों लोग हर साल बैठते हैं, और कुछ सौ ही पास कर पाते हैं।
अंजलि के पास महंगे कोचिंग, लैपटॉप या मोबाइल नहीं थे। लेकिन इरादा था। वो लाइब्रेरी से पुरानी NCERT किताबें पढ़ती, अखबार से नोट्स बनाती और सीनियर्स से चर्चा करती।
2019 में उसने पहली बार परीक्षा दी—Prelims पास किया लेकिन Mains में फेल हो गई।
रात को चुपचाप रोई—but उसने हार नहीं मानी।
2020 में दोबारा कोशिश की—Mains पास कर लिया, लेकिन Interview में रह गई।
“शायद ये मेरे बस की बात नहीं है…” उसने सोचा।
लेकिन फिर उसे अपनी मां का चेहरा याद आया, अपने गांव की लड़कियां, और वो आग जो अभी भी अंदर जल रही थी।
वो फिर से किताबों में डूब गई।
अंतिम और निर्णायक प्रयास
2021 में अंजलि ने तीसरी बार परीक्षा दी।
अब वह पहले से ज़्यादा तैयार थी। उसने खुद के शॉर्ट नोट्स बनाए, मॉक इंटरव्यू दिए और एक बार दिल्ली जाकर रिटायर्ड IAS ऑफिसर से सलाह भी ली।
Prelims में अच्छा स्कोर आया। Mains के पेपर लिखे और मुस्कुराते हुए बाहर निकली।
Interview के दिन वह एक सादी सी साड़ी में, आत्मविश्वास से भरी हुई UPSC भवन में दाखिल हुई।
एक सवाल आया: “तुम IAS क्यों बनना चाहती हो?”
उसने उत्तर दिया: “ताकि कोई भी लड़की अपने सपने सिर्फ गरीबी की वजह से ना छोड़े।”
बोर्ड के सदस्य मुस्कुरा उठे।
AIR 38 – सपना हुआ साकार
30 मई 2022 को UPSC का रिजल्ट आया।
अंजलि कुमारी – All India Rank 38।
पूरे गांव में जैसे त्योहार मनाया गया। मीडिया, स्थानीय नेता, हर कोई अंजलि की तारीफ कर रहा था।
जिस कलेक्टर ने कभी गांव में आकर उसे प्रेरित किया था, अब वो खुद अंजलि को कॉल कर रहा था।
पिता ने रोते हुए कहा, “अब मेरी बेटी ही कलेक्टर है।”
प्रभाव और पहल
LBSNAA मसूरी में ट्रेनिंग के बाद अंजलि ने एक वादा किया: “मैं अपने गांव को नहीं भूलूंगी।”
उसने गांव की लड़कियों के लिए Scholarship Fund शुरू किया और एक पहल चलाई:
“Dream Beyond Borders” – जिससे गांव और दूरदराज़ के छात्रों को मुफ्त गाइडेंस दिया जाता है।
वो स्कूलों में जाती, बच्चों को प्रेरित करती, और कहती:
“मैं कर सकती हूं, तो तुम भी कर सकते हो।”
आज की अंजलि
आज अंजलि झारखंड की एक जिला अधिकारी (District Magistrate) है।
उसने दूर-दराज़ के इलाकों में सड़कें बनवाई, आदिवासी बच्चों के लिए स्कूल खोले, और सरकारी योजनाएं सही लोगों तक पहुंचाईं।
उसकी आत्मकथा “छोटी सी लड़की, बड़ा सपना” अब स्कूलों में पढ़ाई जाती है।
युवाओं के लिए संदेश
अंजलि की कहानी सिर्फ IAS बनने की नहीं है, बल्कि ये कहानी है—
- सपनों की ताकत की
- संघर्ष से सफलता की
- एक गांव की लड़की के दुनिया जीतने की
वो कहती है:
“पृष्ठभूमि नहीं, सोच आपकी पहचान बनाती है।”
“संसाधन नहीं, जज़्बा सफलता लाता है।”
निष्कर्ष
एक ऐसी लड़की जिसने कभी टूटी चारपाई पर बैठकर पढ़ाई की, आज वही ऑफिसर बनकर फैसले ले रही है।
अंजलि कुमारी की कहानी हर उस लड़की को उम्मीद देती है जो सपने देखने से डरती है।
यह कहानी सिर्फ प्रेरणा नहीं है…
यह एक सबूत है—कि सपने सच होते हैं।