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Romantic Love Story || बारिश को सब याद है

 

     बारिश को सब याद है

Romantic Love Story

learnkro.com-पहली बूँद ने बालकनी के जंग लगे रेलिंग पे ऐसे टपक मारा… जैसे कोई राज़ बहुत दिनों बाद ज़ुबान पे आया हो।

फिर शुरू हो गई बारिश—धीरे नहीं, जैसे कोई राग जो बहुत वक़्त से दबा बैठा था, अब खुल के बहने लगा हो। पूरा उदयपुर भीग गया, बारिश के चांदी जैसे पर्दों में लिपटा हुआ। मिट्टी की खुशबू हवा में घुल गई, जैसे धरती सुकून की साँस ले रही हो।

गंगौर घाट के किनारे एक पुरानी हवेली की बालकनी में खड़ा था आरव मेहता। उम्र लगभग इकत्तीस। पेशे से आर्किटेक्ट, और दिल से थोड़ा खोया हुआ। उसे खुद नहीं पता था कि उसे यहां क्या खींच लाया… दादा की छोड़ी ये हवेली, टूटे हुए गुज़रे वक़्त की तरह उसके सामने थी। मगर बारिश की पहली बूंदों के साथ, जैसे हवेली बोलने लगी हो। कोई पुरानी आवाज़… जो अब तक चुप थी।

नीचे झील पिचोला की सतह हिल रही थी, जैसे नींद से जागी हो। नावें चुपचाप किनारे से टिकी हुई थीं, और दूर पीपल के झुरमुटों से मोरों की आवाजें आती थीं। अठारह साल बाद आरव उदयपुर लौटा था—मगर लगता था कि यहाँ की हर ईंट उसे बेहतर जानती है।

हवेली ने सांस ली। उसके पत्थर जैसे पुरखों ने बारिश में कराह नहीं मारी, बल्कि जैसे चैन की साँस ली हो। जैसे उन्होंने भी उसके लौटने का इंतज़ार किया हो।

आरव एक खिड़की के पास गया, लकड़ी का ढांचा उखड़ा हुआ, रंग की परतें झड़ रही थीं। दीवारों से काई लिपटी थी, छत से टप-टप बूँदें गिर रही थीं किसी पुरानी मटकी में।

ये जगह… ये वो इंडिया नहीं था जिसे वो मुंबई में बनाता आया था। ये कुछ और था—पुराना, ठहरा हुआ, और बेहद सच्चा। यहां खामोशी भी बोलती थी।

अचानक दूर एक दरवाज़ा हवा में पट से बंद हो गया।

वो चौंका।

डर नहीं था। सिर्फ… ध्यान भटका।

वो चला उस दिशा में, गलियों में उसके बूट्स की आवाज़ गूंज रही थी। हवेली का आँगन खुला हुआ था, चारों तरफ खुले बरामदे, बीच में एक टूटा हुआ फव्वारा। पत्थर के हाथियों से पानी बह निकला जैसे ज़मीन को फिर से चूमने चला हो।

वो वहीं रुक गया।

यही था उसका जवाब। बारिश ना केवल आई थी… बारिश उसे बदल रही थी।

उसने आँखें बंद की, सुना—सिर्फ बारिश नहीं, सब कुछ जो बारिश ने जगा दिया था। दादी की कहानियाँ, पिता और दादा की बहसें, और वो गाड़ी… जो उसे छोड़ कर चली गई थी।

बहुत दूर, मंदिर की घंटी बजी। बारिश में देवता भी झूमते हैं, ऐसा माना जाता है।

आरव स्टडी रूम की तरफ बढ़ा, जहाँ उसके दादा काम किया करते थे। दरवाज़ा खोला। धूल उठी जैसे सदियों से सोई आत्मा जागी हो। किताबें, पुरानी तस्वीरें, और एक ग्लोब… जिस पर उदयपुर गोल घेरे में लिखा था।

मेज पर एक डायरी रखी थी।

वो करीब गया।

सिर्फ एक पेज खुला था।

“बारिश तुझे उसके पास ले जाएगी। बस भरोसा रखना।”

लिखाई जानी-पहचानी सी थी। नीचे एक स्केच—एक कैमरा, एक झील, और एक औरत… जिसके बाल बारिश में उड़ रहे थे।

उसने पन्ना बंद कर दिया।

बिजली चमकी। आसमान चीखा।

और कहीं… झील के पास, उसी झोंके में मीरा ने कैमरे का बटन दबाया। उसकी आँखों में सवाल थे, होठों पे चुप्पी। दुपट्टा हवा में लहराया और बारिश ने उसके गालों को छुआ—जैसे कहा हो, “वापसी मुबारक।”

उसे नहीं पता था कि वो क्यों लौटी।

बस इतना कि कोई या कुछ… उसका इंतज़ार कर रहा था।

भगवान जगन्नाथ की पूरी कथा और महत्व || Magical Story

भगवान जगन्नाथ की पूरी कथा और महत्व

भगवान जगन्नाथ

learnkro.com -भगवान जगन्नाथ हिंदू धर्म के सबसे पूजनीय देवताओं में से एक हैं, जिनकी मुख्य रूप से पुरी, ओडिशा में पूजा की जाती है। उनकी कथा हिंदू शास्त्रों, लोककथाओं और परंपराओं में गहराई से समाई हुई है, जो उन्हें भारतीय आध्यात्मिकता में एक विशिष्ट और रहस्यमय व्यक्तित्व बनाती है।

1. भगवान जगन्नाथ की उत्पत्ति और पौराणिक कथा

दिव्य अवतार

स्कंद पुराणब्रह्म पुराण और जगन्नाथ चरितामृत के अनुसार, भगवान जगन्नाथ, भगवान विष्णु (या कृष्ण) का ही एक रूप हैं। उनकी उत्पत्ति से जुड़ी कई कथाएँ प्रचलित हैं:

क) राजा इंद्रद्युम्न की कथा

  • मालवा के एक धर्मपरायण राजा इंद्रद्युम्न ने स्वप्न में देखा कि ओडिशा के जंगलों में एक रहस्यमय नील माधव (नीले रंग के विष्णु) की पूजा होती है।

  • उन्होंने एक ब्राह्मण पुजारी विद्यापति को उस देवता को ढूंढने भेजा। विद्यापति ने एक आदिवासी लड़की ललिता से विवाह कर लिया, जिसके पिता विश्वावसु को नील माधव के गुप्त स्थान का पता था।

  • काफी प्रयासों के बाद विद्यापति ने नील माधव को खोज लिया, लेकिन दिव्य शक्ति के कारण उसकी आँखों की रोशनी चली गई।

  • बाद में राजा इंद्रद्युम्न स्वयं ओडिशा पहुँचे, लेकिन नील माधव गायब हो चुके थे। तब एक आकाशवाणी हुई कि वे एक भव्य मंदिर बनवाएँ और लकड़ी की मूर्ति स्थापित करें।

  • राजा ने देवशिल्पी विश्वकर्मा को मूर्तियाँ बनाने का आदेश दिया। विश्वकर्मा ने शर्त रखी कि जब तक वह काम पूरा न कर ले, कोई उन्हें परेशान न करे।

  • लेकिन राजा ने धैर्य खो दिया और समय से पहले दरवाज़ा खोल दिया। इस कारण मूर्तियाँ अधूरी रह गईं (इसीलिए जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियों के हाथ-पैर नहीं हैं और आँखें बड़ी-बड़ी हैं)।

  • अंततः जगन्नाथ (कृष्ण), बलभद्र (बलराम) और सुभद्रा (उनकी बहन) की मूर्तियों को पुरी के जगन्नाथ मंदिर में स्थापित किया गया।

ख) कृष्ण की लीलाओं से संबंध

  • एक अन्य कथा के अनुसार, जगन्नाथ का संबंध द्वारका में कृष्ण के अंतिम समय से है।

  • कृष्ण के देह त्यागने के बाद उनके शरीर का दाह-संस्कार किया गया, लेकिन उनका हृदय जलने से बच गया। इसे एक लकड़ी के बक्से में रखकर समुद्र में बहा दिया गया, जो पुरी पहुँचकर दारुब्रह्म (जगन्नाथ की लकड़ी की मूर्ति) में बदल गया।

ग) आदिवासी संबंध (सवार मूल)

  • कुछ विद्वानों का मानना है कि जगन्नाथ मूल रूप से सबर जनजाति के देवता थे, जिन्हें बाद में हिंदू धर्म में समाहित कर लिया गया।

  • यही कारण है कि उनका रूप पारंपरिक हिंदू देवताओं से भिन्न है।

2. भगवान जगन्नाथ का अनोखा स्वरूप

पारंपरिक हिंदू देवताओं से अलग, जगन्नाथ की मूर्ति लकड़ी (नीम या दारु) की बनी होती है और इसमें निम्न विशेषताएँ हैं:

  • बड़ी गोल आँखें (सर्वज्ञता का प्रतीक)

  • हाथ-पैर नहीं (निराकार, सर्वव्यापी स्वरूप का प्रतीक)

  • लाल और काले रंग (सूर्य और पृथ्वी का प्रतीक)

उनके साथ पूजे जाते हैं:

  • बलभद्र (बलराम) – उनके बड़े भाई (सफेद रंग)

  • सुभद्रा – उनकी बहन (पीला रंग)

  • सुदर्शन चक्र – दिव्य अस्त्र (एक अलग देवता के रूप में)

3. जगन्नाथ मंदिर, पुरी

  • 12वीं शताब्दी में राजा अनंतवर्मन चोडगंग देव द्वारा बनवाया गया।

  • चार धाम तीर्थयात्रा स्थलों में से एक।

  • मंदिर के ऊपर लगा ध्वज हमेशा हवा की विपरीत दिशा में लहराता है

  • मंदिर की रसोई (आनंद बाजार) में महाप्रसाद बनता है, जिसे दिव्य भोजन माना जाता है।

4. रथ यात्रा (चारित्रिक महोत्सव)

  • सबसे प्रसिद्ध त्योहार, जो हर साल जून/जुलाई में मनाया जाता है।

  • तीन विशाल रथों में देवताओं को बिठाकर निकाला जाता है:

    • नंदीघोष (जगन्नाथ का रथ – 45 फीट ऊँचा, 16 पहिए)

    • तालध्वज (बलभद्र का रथ – 44 फीट ऊँचा, 14 पहिए)

    • दर्पदलन (सुभद्रा का रथ – 43 फीट ऊँचा, 12 पहिए)

  • लाखों भक्त रथों को जगन्नाथ मंदिर से गुंडिचा मंदिर (3 किमी की दूरी) तक खींचते हैं।

  • यह त्योहार कृष्ण के गोकुल से मथुरा जाने का प्रतीक है।

5. रहस्य और मान्यताएँ

  • मंदिर के शिखर पर लगा सुदर्शन चक्र पुरी के किसी भी कोने से सीधा दिखाई देता है।

  • मंदिर के ऊपर से कोई पक्षी नहीं उड़ता।

  • प्रसाद (महाप्रसाद) कभी कम नहीं पड़ता, चाहे जितने भी भक्त हों।

  • हर 12-19 साल में नवकलेबर अनुष्ठान होता है, जिसमें पुरानी मूर्तियों को दफना दिया जाता है और एक पवित्र नीम के पेड़ से नई मूर्तियाँ बनाई जाती हैं।

6. विभिन्न परंपराओं में जगन्नाथ

  • वैष्णव परंपरा: कृष्ण/विष्णु का रूप माना जाता है।

  • बौद्ध धर्म: कुछ मानते हैं कि जगन्नाथ मूलतः बौद्ध देवता थे।

  • जैन धर्म: तीर्थंकर से जोड़कर देखा जाता है।

  • आदिवासी मान्यताएँ: सर्वोच्च आदिवासी देवता के रूप में पूजे जाते हैं।

7. दार्शनिक महत्व

  • जगन्नाथ सार्वभौमिक प्रेम और समानता के प्रतीक हैं—उनका मंदिर सभी जाति और धर्म के लोगों के लिए खुला है।

  • उनका निराकार रूप ईश्वर की अवर्णनीयता को दर्शाता है।

निष्कर्ष

भगवान जगन्नाथ केवल एक देवता नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक और आध्यात्मिक घटना हैं, जो भक्ति, एकता और दिव्य रहस्य का प्रतीक हैं। उनकी पूजा धार्मिक सीमाओं से परे है, जिस कारण वे भारत के सबसे लोकप्रिय देवताओं में से एक हैं।

लिओरा की लालटेन: एक फुसफुसाते जंगल की कहानी || Magical Story

 एक फुसफुसाते जंगल की कहानी

learnkro.com– बहुत समय पहले, चाँदी सी चमकती रिवर रील नदी और बर्फ से ढके मूनस्टोन पहाड़ों के बीच बसा था एक अनदेखा गाँव — लिओरा। यहाँ के लोग सितारों से बातें करते थे और मानते थे कि दया, जादू से भी ज़्यादा ताकतवर होती है। हर रात, वे लालटेनों को आकाश में उड़ाते — रोशनी

के लिए नहीं, बल्कि अपनी दिल की मुरादें हवा को सौंपने के लिए।

इसी गाँव में रहती थी एक छोटी बच्ची — एलीना। उसके बाल कौवे के पंख जैसे काले थे, और कल्पनाएँ समुद्र से भी गहरी। उसके पास पुराने कपड़े और उधार की किताबें थीं, मगर ख्वाब… एकदम नए।

एलीना अपने दादा डारो के साथ रहती थी — गाँव के मशहूर लालटेन निर्माता। वे लालटेनों को चाँदी के रेशों, सितारों की स्याही और धीरे से फुसफुसाई गई इच्छाओं से बनाते। हर बच्चा मानता था कि डारो की लालटनें बादलों से भी ऊँचा उड़ सकती हैं।

एक दिन, एलीना ने पूछा, “दादा, हमारी लालटनें कभी वापस क्यों नहीं आतीं?”

डारो मुस्कराए, “क्योंकि कुछ इच्छाएँ उड़ती हैं तब तक… जब तक उन्हें वो न मिल जाए जिसकी उन्हें तलाश होती है।”

मगर एलीना केवल ‘शायद’ पर नहीं जीती थी। उसे उत्तर चाहिए था।


🌌 जंगल की रहस्यमयी चमक

एक धुंधली शाम, जब पूरा गाँव फुसफुसाहटों की रात के लिए तैयार हो रहा था, एलीना को जंगल में नीली सी रोशनी दिखाई दी।

वो उसका पीछा करने लगी।

विलो गेट से निकलकर वह घने व्हिस्परिंग वुड्स में घुसी। वहाँ के पेड़ पुराने गीत गुनगुनाते, और हवा में चांदनी की नमी होती।

गहराई में एक टूटी फूटी लालटेन पड़ी थी — डारो की बनाई हुई।

उसकी लौ अब भी टिमटिमा रही थी। जैसे ही एलीना ने उसे छुआ, एक आवाज़ उसके भीतर गूंज उठी:

“मुझे लालटेन कीप में पहुँचाओ।”


🗺️ सफ़र की शुरुआत

अगली सुबह, एलीना ने एक नक्शा, थोड़ी सी रोटी और बहुत सारा साहस बाँधा और निकल पड़ी।

रास्ते में उसने देखा:

  • गाते हुए पहाड़, जहाँ पंछी तुम्हारे मन की बातें दोहराते थे,
  • घड़ी जड़ दलदल, जहाँ समय कभी-कभी उल्टा चलता था (उसे मंगलवार दो बार जीना पड़ा),
  • और फुसफुसाते पुल, जहाँ उसकी मुलाकात हुई ताल से — एक लड़का जो अपनी खोई हुई हिम्मत की तलाश में था।

दोनों साथ हो चले।

रास्ते में, उन्होंने एक जुगनू की रोशनी ढूँढी, एक पत्थर जैसे गोलेम को मुस्कराना सिखाया, और जाना कि सच्ची बहादुरी चुप होती है — बस डर के बावजूद सही को चुनना होता है।


🌳 लालटेन कीप का रहस्य

अंततः वे पहुँच गए लालटेन कीप — जो कोई मीनार नहीं, बल्कि एक विशाल पेड़ था, जिसके हर डाल पर हज़ारों लालटेनें चमक रही थीं।

नीचे बैठा था एक रहस्यमयी प्राणी — हवा और छाया का बना हुआ — कीपर

“तुमने एक भटकी लालटेन लौटाई,” वो गूंजा, “क्यों?”

एलीना बोली, “क्योंकि कोई भी इच्छा भुला दी जाए… ये ठीक नहीं।”

“तो अब तुम अपनी मुराद दो,” कीपर बोला।

एलीना हिचकिचाई। उसका सबसे गहरा सपना था — अपनी माँ से मिलना, जो उसके बचपन में पहाड़ों में खो गई थी।

मगर उसने अपनी इच्छा बदल दी। उसने कहा,

“मैं चाहती हूँ कि कोई भी बच्चे की मुराद… अधूरी न रह जाए।”

कीपर मुस्कराया — और पूरा वृक्ष चमकने लगा।


🌠 नयी सुबह

वो दोनों हवा की लहरों पर सवार होकर लौटे, गाँव खुशी से झूम उठा। और अगली फुसफुसाहटों की रात को जब लोगों ने लालटेनें उड़ाईं, तो वे लौट आईं — संदेशों के साथ:

“तुम्हारी बात सुनी गई है।”

“मज़बूत रहो।”

“तुम अकेले नहीं हो।”

एलीना गाँव की नयी लालटेन निर्माता बनी — उसकी दुकान स्याहियों और बोतलबंद हवाओं से भरी थी।

और अब… लिओरा की लालटनें केवल आशाएँ नहीं उड़ातीं — वे उत्तर भी लाती हैं।


कहानी की सीख:

“छोटी सी भी उम्मीद, जब साहस और करुणा के साथ उड़ती है, तो वह हजारों दिलों को रोशनी दे सकती है।”

सच्चाई का मूल्य || Moral Story

 

सच्चाई का मूल्य

 

learnkro.com– छोटे से गाँव सुदीपुर में एक गरीब लड़का रहता था – उसका नाम था अर्जुन। उसका परिवार खेती-किसानी करके मुश्किल से अपना गुज़ारा करता था। पढ़ने में तेज़, लेकिन हालात के चलते स्कूल अक्सर छोड़ना पड़ता। पर अर्जुन ने कभी भी अपनी मेहनत और ईमानदारी से समझौता नहीं किया।

गाँव के एक कोने में एक पुराना स्कूल था, जहाँ मास्टरजी रामप्रसाद पढ़ाया करते थे। उन्होंने अर्जुन की लगन देखी और बिना फीस के उसे पढ़ाने लगे। अर्जुन पढ़ाई में दिन-ब-दिन आगे बढ़ता गया। किताबें पुरानी मिलतीं, कपड़े फटे होते, पर आँखों में सपने चमकते।

एक दिन गाँव में खबर फैली कि शहर के एक बड़े स्कूल में छात्रवृत्ति (स्कॉलरशिप) की परीक्षा होगी – जिसे पास करने पर शहर में मुफ्त पढ़ाई और रहने की सुविधा मिलेगी। अर्जुन के चेहरे पर उम्मीद की एक चमक आ गई। रामप्रसाद जी ने कहा, “बेटा, मेहनत से मत घबराना। अवसर मिले तो उसे दोनों हाथों से पकड़ना।”

अर्जुन ने जी-जान लगाकर परीक्षा की तैयारी शुरू कर दी।

परीक्षा का दिन आया। अर्जुन को पास के कस्बे में परीक्षा देने जाना था। माँ ने उसका बस्ता ठीक किया, और अपनी बचत में से तीन रुपए उसके हाथ पर रख दिए—सिर्फ आने-जाने के किराए भर के लिए।

बस स्टैंड तक पैदल चलकर अर्जुन समय पर पहुँचा। परीक्षा कक्ष में सब बच्चे महँगे कपड़ों और किताबों के साथ आए थे। अर्जुन थोड़ा सहमा, लेकिन मन में विश्वास था।

परीक्षा शुरू हुई।

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कुछ ही मिनट बाद अर्जुन को लगा कि उसके बगल वाला लड़का बार-बार उसे देखने की कोशिश कर रहा है। थोड़ी देर में उसने एक पुर्जा निकालकर चुपचाप अर्जुन की तरफ सरकाया।

“तू भी देख ले, पूरे उत्तर हैं,” उसने फुसफुसाकर कहा।

अर्जुन ने एक बार उस पुर्जे को देखा, फिर अपनी उत्तर पुस्तिका। फिर हल्की मुस्कान के साथ उस पुर्जे को वापस लौटा दिया।

वह लड़का झुंझलाकर बोला, “तू बेवकूफ है! पास नहीं होगा।”

लेकिन अर्जुन का मन शांत था।

परीक्षा के बाद वह चुपचाप अपने घर लौट आया। मन में थोड़ा डर भी था – क्या वह वाकई पास हो पाएगा? शहर जाना उसका सपना था, पर उसका रास्ता इतना आसान नहीं था।

तीन हफ्ते बाद शहर के स्कूल से एक पत्र आया – अर्जुन को छात्रवृत्ति मिल गई थी। वह प्रथम स्थान पर था।

पूरा गाँव खुशियाँ मना रहा था। माँ की आँखों में आँसू थे – गर्व के आँसू।

अर्जुन शहर गया। स्कूल सुंदर था, सारी सुविधाएँ थीं, और पढ़ाई का स्तर काफी ऊँचा।

कुछ महीने बीते। एक दिन स्कूल के प्रधानाचार्य ने सब छात्रों से कहा, “हमें एक प्रतिनिधि चाहिए जो अंतर-विद्यालय विज्ञान प्रतियोगिता में स्कूल का नेतृत्व करे।”

कई नाम आए, लेकिन चयन हुआ अर्जुन का।

प्रतियोगिता के लिए छात्रों को समूहों में बांटा गया। अर्जुन के समूह में वही लड़का भी था जो उस दिन परीक्षा में नकल करा रहा था — नाम था रोहन।

अर्जुन उसे देखकर थोड़ा चौंका, लेकिन कुछ बोला नहीं। रोहन को शर्मिंदगी हुई, पर अर्जुन ने उससे कभी कटुता नहीं दिखाई। उन्होंने साथ मिलकर परियोजना पर काम किया।

प्रतियोगिता में उनके समूह ने पहला स्थान हासिल किया। मीडिया में अर्जुन और रोहन की जोड़ी की चर्चा हुई।

एक इंटरव्यू में जब पत्रकार ने अर्जुन से पूछा, “क्या कभी आपने अनुचित रास्ते अपनाने की सोची?”

अर्जुन मुस्कराया, “सच्चाई एक मशाल की तरह होती है – रास्ता कठिन हो सकता है, लेकिन उजाला वही देती है।”

रोहन, जो पास ही बैठा था, भावुक हो गया। उसने मंच पर ही कहा, “मैं कभी अर्जुन को छोटा समझता था। लेकिन आज जान गया हूँ कि ईमानदारी ही असली ताकत है। वह मेरा मार्गदर्शक बन गया है।”

अर्जुन की कहानी धीरे-धीरे राज्य स्तर तक पहुँची। उसे विभिन्न मंचों पर आमंत्रित किया जाने लगा। उसने कभी भी अपनी सादगी या विनम्रता नहीं छोड़ी।

कुछ वर्षों बाद, अर्जुन ने इंजीनियरिंग में टॉप किया और विदेश से शोध कार्य करने का प्रस्ताव मिला। लेकिन उसने विदेश जाने से पहले एक वादा निभाया — उसने अपने गाँव सुदीपुर में एक आधुनिक स्कूल की स्थापना की, जहाँ कोई बच्चा सिर्फ पैसे के अभाव में अपनी पढ़ाई न छोड़े।

स्कूल का नाम रखा गया – “सत्यदीप विद्यालय”

आज अर्जुन जहाँ भी जाता है, उसके नाम से पहले एक उपमा लगती है – “ईमानदारी का प्रतीक”

कहानी की सीख:

ईमानदारी हमेशा कठिन हो सकती है, लेकिन अंत में वही सबसे मूल्यवान होती है।

The Sound of Clay: The Rise of Rishi Verma || Success story

 The Rise of Rishi Verma

 

Chapter 1: Born in Fire and Earth

learnkro.com– In a quiet gali of Varanasi, near the banks of the Ganges, lived Rishi Verma—a potter’s son whose hands molded clay before he could write his name. His father, Gopal Verma, was a skilled artisan, crafting diyas and earthen pots with mesmerizing finesse. But tradition and talent didn’t always translate to prosperity. The family’s earnings were seasonal, their lives dictated by festivals and fading demand.

Rishi studied at a local government school, often while helping his father at the wheel. Unlike most children who dreaded school, he longed for it. Books were his escape, and mathematics was his playground. Numbers made sense; poverty didn’t.

Chapter 2: Glimpses of a Bigger World

One afternoon, when Rishi was twelve, a group of foreign tourists wandered into their modest shop. Among them was

 

Professor Helen D’Souza, a ceramic artist from Goa. She was fascinated not just by the pottery but by the boy explaining it with such eloquence—in broken English, yet shining passion.

Intrigued, she visited daily, asking Rishi about his dreams. “To make something… big. Not just pots,” he said shyly, “but systems. I like solving problems.”

She left him with a gift: an introductory book on design thinking, and her contact number, in case he ever needed help. That book became his Bible.

Chapter 3: Wheels of Change

By the time he reached class 10, Rishi was building clay water filters for his school science projects. His idea? Create eco-friendly, low-cost filtration systems using traditional materials. While his classmates prepared charts, Rishi brought functional prototypes to every exhibition.

His breakthrough came at the National Innovation Fair for Rural Youth in Delhi, where he won second prize. With the small scholarship money, he bought his first laptop—secondhand, slightly dented, but to him, it gleamed like gold.

Chapter 4: Cracks in the Surface

Yet, hardship was never far. His father developed a respiratory illness due to years of exposure to kiln smoke. Hospital bills mounted, and Rishi considered dropping out. It was his mother, soft-spoken and stoic, who put her foot down. “You will go. I’ll take over your father’s work if I have to,” she said.

Rishi applied for a full-ride scholarship to the National Institute of Design (NID), Ahmedabad. He poured his soul into his portfolio—sketches of reimagined potter’s wheels, sustainable packaging, biodegradable water bottles made of baked clay.

The day the acceptance letter came, he ran barefoot to the temple steps and wept.

Chapter 5: Clay into Gold

Life at NID wasn’t smooth. Rishi struggled with English, with the digital tools his peers used effortlessly, and with being the “potter boy.” But clay grounded him. While others learned materials, he understood them. While they sketched theories, he prototyped realities.

In his third year, he invented the “Mitticool Filter Jar”—a low-cost, zero-electricity water purification system made entirely from locally sourced clay. The prototype received attention from NGOs and health startups.

Soon, a Bengaluru-based impact investor came on board. Rishi’s startup, “Dharti Solutions,” was born.

Chapter 6: Return to the Roots

At age 26, Rishi returned to his gali in Varanasi—not as the potter’s son, but as the CEO of a growing enterprise. He didn’t just set up manufacturing units—he created artisan-led cooperatives, empowering nearly 300 traditional potters across Uttar Pradesh and Bihar.

His mother’s proudest moment came when she saw his TEDx talk streamed on a neighbor’s phone. “Hum mitti ke log hain,” Rishi said in it, smiling. “But we’re not meant to stay buried.”

Chapter 7: Legacy in the Making

Today, Dharti Solutions supplies to over 15 countries. Rishi trains students through workshops on ethical design and rural innovation. His filters are used in refugee camps, remote villages, and even art galleries that celebrate sustainable living.

But Rishi still wakes up early to sit at the wheel once a week. He says it reminds him where he came from—and who he builds for.

RISING FROM DUST: THE STORY OF AYESHA MEHTA || Success Story

 THE STORY OF AYESHA MEHTA

Chapter 1: The Beginning

learnkro.com– In the quiet streets of Rajpipla, a small town nestled deep within Gujarat, a girl named Ayesha Mehta watched the world go by from the cracked verandah of her family’s rented home. Her father, a former textile mill worker, had lost his job in the city and returned home after an accident that left his right leg permanently injured. Her mother stitched clothes for neighbors, saving every rupee possible.

Ayesha, the eldest of three siblings, walked 6 kilometers daily to her school and back, her shoes torn but her spirit intact. She was average in grades, spoke in broken English, and got laughed at for dreaming big. Her dream

? To become an architect and design sustainable homes for people like her—those who had none.

Chapter 2: The Spark

The turning point came during a summer internship in 11th grade when she got to assist on a local housing project. Though most tasks involved carrying bricks and taking measurements, she got to observe the engineers and architects at work. One day, an architect noticed Ayesha sketching ideas in her notebook and encouraged her to pursue formal training.

That same evening, Ayesha cried while showing her sketches to her mother. “Do you think I’m dreaming too big?” she whispered.

“No, beta,” her mother said. “But if you want to build houses for others, you must first build a life for yourself.”

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Chapter 3: Climbing the Mountain

The road to architecture school wasn’t easy. Ayesha studied under candlelight and visited cyber cafés to learn AutoCAD and SketchUp on outdated systems. With no money for coaching, she relied on free YouTube tutorials and library books donated by a kind retired professor who saw her potential.

In 2017, she cleared the entrance exam for CEPT University in Ahmedabad. The day the results came, her father borrowed a friend’s phone to check the list. When they saw her name on it, they broke down in tears.

Chapter 4: Falling and Rising Again

But city life was overwhelming. Ayesha struggled to blend in with wealthier peers, battled homesickness, and flunked her first design jury. She considered quitting.

One evening, an old friend from her village called and said, “You represent us. If you give up, who’ll believe it’s possible?”

That night, something clicked. She stopped trying to fit in and focused on excelling. She sought mentorship, joined the sustainability club, and eventually won a design competition for eco-friendly housing funded by an international NGO.

Chapter 5: Homecoming

Five years later, Ayesha returned to Rajpipla—not as the girl with tattered shoes, but as the architect of the town’s first low-cost, solar-powered housing colony. She didn’t just build homes; she built hope.

Her designs now feature in international journals, and she runs a foundation training underprivileged students in design thinking and sustainable building techniques. But if you ask her, her proudest moment wasn’t winning awards—it was handing the keys of a new house to her own parents.

अंधेरे से उजाले तक: रवि की कहानी || Success Story

अंधेरे से उजाले तक: रवि की कहानी”

भाग 1: छोटे शहर का बड़ा सपना

Learnkro.com– गुजरात के एक छोटे से गाँव में, रवि नाम का एक साधारण लड़का रहता था। उसके पिता एक दर्ज़ी थे और माँ गृहिणी। गाँव में बिजली अक्सर गुल रहती थी, लेकिन रवि का सपना कभी मंद नहीं हुआ। वह बड़े होकर इंजीनियर बनना चाहता था।

बचपन से ही उसे मशीनों को खोलने, जोड़ने और समझने का शौक था। पिता के पुराने सिलाई मशीन के पुर्ज़ों से वह खिलौनों की जगह कुछ न कुछ नया बनाता रहता। उसके दोस्तों को क्रिकेट पसंद था, लेकिन रवि को विज्ञान के प्रयोगों में मज़ा आता।

लेकिन… एक दिन ऐसा आया जब उसके पिता की तबीयत बहुत बिगड़ गई और घर की आर्थिक स्थिति डगमगाने लगी। उस समय रवि दसवीं कक्षा में था, और यह वही मोड़ था जिसने उसे ज़िंदगी का असली पाठ पढ़ाया…

भाग 2: संघर्ष की आग में तपना

पिता की बीमारी ने परिवार को झकझोर दिया। रवि अब न सिर्फ एक विद्यार्थी था, बल्कि परिवार की जिम्मेदारी भी उसके कंधों पर आ गई थी। वह स्कूल से लौटकर पास के एक साइबर कैफ़े में काम करने लगा — कंप्यूटर साफ करना, प्रिंट निकालना, और ग्राहकों की मदद करना उसका रोज़ का काम बन गया।

यहाँ उसकी दोस्ती हुई मालिक के भतीजे अमन से, जो इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा था। अमन ने रवि को कोडिंग की दुनिया से परिचित कराया — HTML, CSS और फिर Python। रवि रात में कैफ़े का एक पुराना सिस्टम इस्तेमाल करता और कोडिंग के वीडियो देख-देखकर खुद सीखता।

उसके जीवन में एक नई रोशनी जग चुकी थी।

भाग 3: पहली जीत

बारहवीं पास करने के बाद रवि ने एक सरकारी पॉलीटेक्निक कॉलेज में दाख़िला लिया। वहाँ उसे छात्रवृत्ति मिली जिससे उसकी फीस भर पाना संभव हुआ। साथ ही, उसने ऑनलाइन फ्रीलांसिंग साइट्स पर छोटे-मोटे प्रोजेक्ट लेना शुरू कर दिया — वेबसाइट बनाना, फॉर्म डिज़ाइन करना, और डेटा एंट्री।

धीरे-धीरे उसके छोटे-छोटे कामों से पैसे आने लगे। उसने अपने पहले लैपटॉप के लिए खुद पैसे जमा किए। वो दिन उसके लिए एक सपने के सच होने जैसा था — जब उसने अपने पैसों से पहली बार एक नई चीज़ खरीदी थी।

भाग 4: सफलता की सीढ़ियाँ

तीन साल बाद रवि ने एक बड़ी कंपनी में इंटर्नशिप की। वहाँ उसने एक एप्लिकेशन डिज़ाइन किया जो ग्रामीण इलाकों के छात्रों को तकनीकी शिक्षा प्रदान करने में मदद करता था। उसी एप के ज़रिए उसे एक स्टार्टअप से ऑफर आया — “हम तुम्हारे आइडिया में निवेश करना चाहते हैं।”

अब वह सिर्फ एक कर्मचारी नहीं, बल्कि एक टेक्नोलॉजी स्टार्टअप का को-फाउंडर बन चुका था। उसके बनाए एप्लिकेशन ने कई राज्यों में हज़ारों छात्रों की मदद की।

भाग 5: गाँव में लौटा हीरो

सफलता की ऊँचाइयों तक पहुँचने के बाद, रवि अपने गाँव लौटा। उसने वहीं एक ‘Digital Learning Center’ शुरू किया — जहाँ छात्रों को मुफ्त में कोडिंग, डिजिटल स्किल्स और करियर गाइडेंस दी जाती है। अब वह अपने जैसे तमाम छोटे गाँव के युवाओं को सपने देखने और उन्हें पूरा करने की हिम्मत दे रहा है।

अंतिम विचार

रवि की कहानी हमें सिखाती है कि परिस्थिति चाहे कितनी भी कठिन क्यों न हो, अगर इरादा मजबूत हो और मेहनत सच्ची, तो कोई भी लक्ष्य असंभव नहीं।

नील तारा की रहस्यमयी किताब || Magical Story

 

नील तारा की रहस्यमयी किताब

Learnkro.comरैवन्सपुर एक छोटा लेकिन रहस्यमयी गाँव था, जहाँ नीले आकाश के नीचे पुराने खंडहर, बांस के जंगल और गहराई से भरे हुए कुएँ आज भी पिछली पीढ़ियों की कहानियाँ फुसफुसाते थे। यहीं रहती थी तारा—ग्यारह साल की एक तेज़, जिज्ञासु और चुलबुली बच्ची, जिसकी आंखों में सदैव कुछ नया खोजने की चमक होती थी।

वह अपनी दादी सरस्वती देवी के साथ रहती थी, जो गाँव की पुरानी किस्सागो मानी जाती थीं। शाम को आँगन में बैठकर वे तारा को अद्भुत लोकों, असाधारण प्राणियों और वक़्त में खोई हुई किताबों की कहानियाँ सुनातीं।

एक अनजानी खोज

एक दिन, जब बारिश बंद हो चुकी थी और सूरज की पहली किरणें टपकती हुई पत्तियों पर चमक रहीं थीं, तारा गाँव के बाहर खंडहरों में खेल रही थी। वहाँ एक पुराना टूटा हुआ पत्थर कुछ अजीब लग रहा था—जैसे कोई उसे बार-बार घूर रहा हो।

जिज्ञासावश उसने पत्थर को हटाया और नीचे जो देखा, उसकी सांसें थम गईं। एक चमचमाती नीली किताब… धूल-मिट्टी से अलग, जैसे वर्षा के पानी ने उसे ठीक अभी-अभी धोया हो।

किताब का जादू

किताब खोलते ही हवा में एक हलकी गूंज हुई—जैसे दूर से किसी ने फुसफुसा कर कहा हो, “तुम चुनी गई हो।”

पहले पन्ने पर सुनहरे अक्षरों में लिखा था:

“यह केवल पढ़ने की किताब नहीं… यह जीने की परीक्षा है।”

तारा ने दादी को कुछ नहीं बताया। वह जानती थी, कुछ रहस्य खुद सुलझाने चाहिए। हर रात वह किताब के नए अध्याय को पढ़ती और अगले दिन जागते ही कुछ नया घटित होता।

प्रथम अध्याय: दरवाज़ा समय का

अध्याय खुलते ही वह खुद को एक दूसरी जगह पर पाती है—सुनहरा मैदान, जहां सूरज नीचे से उग रहा था और घास के तिनकों पर तारे झिलमिला रहे थे। वहाँ उसे एक वृद्ध ऋषि मिले, जिनके माथे पर समय का चक्र घूम रहा था।

“क्या तुम वक़्त को बदलना चाहती हो या खुद को?” उन्होंने पूछा।

तारा उलझ गई। “मुझे नहीं पता,” उसने ईमानदारी से कहा।

“तभी परीक्षा शुरू होती है,” ऋषि बोले।

उसे एक अनोखी घड़ी दी गई—हर बार जब वह कोई सही निर्णय लेती, घड़ी की सुइयाँ आगे बढ़तीं। लेकिन जैसे ही वह डर या लालच से भर जाती, सुइयाँ उलट जातीं।

द्वितीय अध्याय: भावनाओं का जंगल

अब वह घनी झाड़ियों और असंख्य आवाज़ों वाले जंगल में थी। यहाँ पेड़ बात करते थे, और नदी गुनगुनाती थी। लेकिन वह खुश नहीं थी—हर पेड़ किसी बीते हुए दुःख की कहानी सुना रहा था।

एक बेल ने उसे जकड़ लिया और फुसफुसाया, “कभी-कभी अपनी भावनाओं को छिपाना भी डर की निशानी है।”

तारा को समझ आया, उसे अपने डर को स्वीकार करना होगा। उसने ज़ोर से कहा, “मैं डरती हूँ… लेकिन मैं रुकूंगी नहीं!” और बेल झड़कर गिर गई।

तृतीय अध्याय: परछाई की परीक्षा

अब वह एक दर्पणों के महल में थी, जहां हर शीशे में उसकी अलग-अलग छवियाँ दिख रहीं थीं—एक डरपोक, एक क्रोधित, एक घमंडी, और एक उदास।

एक आवाज़ आई: “जो खुद को पूरी तरह देख सका, वही बाहर निकल सकेगा।”

तारा ने अपनी परछाई से आंखें मिलाईं और पहली बार खुद को सच में देखा—ख़ामियों और अच्छाइयों के साथ। तभी रास्ता खुला, और उसने पहली बार महसूस किया, वह बड़ी हो रही है।

दादी का रहस्य

कई अध्यायों के बाद, एक दिन किताब में आया एक ऐसा पृष्ठ जहाँ कोई अक्षर नहीं थे। बस एक चित्र था—दादी, उसी किताब को हाथ में लिए एक जादुई द्वार के सामने खड़ी थीं।

तारा हक्की-बक्की रह गई। दादी को यह किताब कैसे मिली थी? क्या वह भी इसमें से गुज़र चुकी थीं?

उसने दादी से पूछा। सरस्वती देवी मुस्कुराईं और चुपचाप अपनी अलमारी की एक पुरानी दराज़ खोली। उसमें वैसी ही एक किताब रखी थी—लेकिन मद्धम पड़ चुकी थी।

“मैंने भी इसे पढ़ा था,” दादी ने कहा। “लेकिन हर पीढ़ी को अपनी परीक्षा खुद देनी होती है। किताब सब कुछ बताती नहीं… बस रास्ता दिखाती है।”

अंतिम अध्याय: चुनाव का द्वार

अब किताब का आखिरी अध्याय आया था। तारा को दो रास्तों के बीच चुनना था:

  1. हमेशा के लिए उस जादुई लोक में रह जाए, जहाँ वह हर भाषा समझ सकती थी, हर जीव उसका मित्र था, और समय एक खेल था।
  2. या फिर अपने गाँव लौट आए, लेकिन एक नई समझ, नया नज़रिया और इस जिम्मेदारी के साथ कि वह एक दिन इस किताब को किसी योग्य बच्चे को सौंपे।

तारा ने आकाश की ओर देखा—जहाँ तारे नाच रहे थे, बादल रंग बदल रहे थे। लेकिन उसे पता था… असली जादू वहाँ नहीं, यहीं था—जहाँ रिश्ते, कहानियाँ, और सपने पनपते थे।

उसने किताब बंद की।

और किताब ने खुद को ताले में बंद कर लिया।


उपसंहार

तारा अब बड़ी हो चुकी है। वह रैवन्सपुर में एक स्कूल चलाती है, जहाँ बच्चों को कहानियाँ पढ़ाई जाती हैं—लेकिन कुछ कहानियाँ बस फुसफुसाई जाती हैं, जब नीली रोशनी खिड़की से झाँकती है और कोई बच्चा किताबों के पीछे छुपकर कुछ ढूँढता है…

और उस अलमारी में… किताब अब भी रखी है… नए जिज्ञासु हाथों के इंतज़ार में।

 

एक लकड़हारे की सच्ची जीत || Moral Story

 

“ईमानदारी की झील: एक लकड़हारे की सच्ची जीत

 

अध्याय 1: गाँव का लकड़हारा

Learnkro.com– बहुत समय पहले भारत के एक छोटे, हरे-भरे गाँव में अर्जुन नाम का एक गरीब लकड़हारा रहता था। उसका जीवन सरल था, पर वह बहुत मेहनती और सच्चा इंसान था। हर सुबह सूरज के साथ उठकर, वह अपना पुराना कुल्हाड़ी लेकर पास के जंगल में पेड़ काटने चला जाता, जिससे लकड़ियाँ इकट्ठी करके बाजार में बेच सके। अर्जुन की पत्नी राधा और उसका छोटा बेटा गोपाल ही उसका परिवार थे।

अर्जुन को अपनी गरीबी का कभी दुःख नहीं हुआ क्योंकि उसके पास आत्मसम्मान और ईमानदारी थी।

अध्याय 2: संकट की घड़ी

एक दिन गर्मियों की दोपहर थी। अर्जुन जंगल में पेड़ काट रहा था। वह बहुत थक गया था, लेकिन काम पूरा करना चाहता था। एक बड़ी सूखी डाल काटते वक़्त उसकी कुल्हाड़ी का हैंडल पसीने की वजह से फिसल गया और कुल्हाड़ी उछलकर पास की गहरी झील में जा गिरी।

अर्जुन चौक पड़ा। वह झील के किनारे भागा, लेकिन झील इतनी गहरी और साफ़ थी कि कुल्हाड़ी का नामोनिशान भी नज़र नहीं आया। वह झील के किनारे बैठकर अपने सिर पर हाथ रखकर रोने लगा। “हे भगवान! अब मैं क्या करूँगा? कुल्हाड़ी के बिना तो मेरा काम ही नहीं चलेगा!”

अध्याय 3: परी का प्रकट होना

अर्जुन की ईमानदारी और उसकी सच्चाई से प्रभावित होकर झील के पानी में लहरें उठीं, और अचानक एक तेज़ सुनहरा प्रकाश फैला। उस प्रकाश से एक सुंदर परी प्रकट हुई। उसके माथे पर चाँद-सा तेज़ था और आवाज़ एक गीत की तरह मधुर।

परी बोली, “अर्जुन, मैंने तुम्हारी पुकार सुनी है। तुम परेशान क्यों हो?”

अर्जुन आश्चर्य में डूबा था, पर उसने घबराए बिना कहा, “हे देवी, मेरी कुल्हाड़ी इस झील में गिर गई है। वही मेरी रोज़ी-रोटी का सहारा थी। अब मैं अपने परिवार का पेट कैसे पालूँगा?”

परी मुस्कराई। “चिंता मत करो। मैं तुम्हारी सहायता करूँगी,” कहकर वह झील में डुबकी लगाई।

अध्याय 4: परी की परीक्षा

परी झील से बाहर आई तो उसके हाथ में एक सोने की कुल्हाड़ी थी। उसने चमकदार कुल्हाड़ी अर्जुन को दिखाते हुए पूछा, “क्या यह तुम्हारी कुल्हाड़ी है?”

अर्जुन ने इधर-उधर देखा और फिर धीरे से बोला, “नहीं देवी, ये मेरी कुल्हाड़ी नहीं है। मेरी कुल्हाड़ी तो लोहे की पुरानी-सी है।”

परी फिर झील में गई और इस बार वह चाँदी की कुल्हाड़ी लेकर आई। उसने वही सवाल दोहराया।

अर्जुन ने फिर सिर हिलाते हुए मना किया, “नहीं देवी, यह भी मेरी कुल्हाड़ी नहीं है।”

अब परी तीसरी बार झील में उतरी और इस बार उसने पुरानी, जंग लगी लोहे की कुल्हाड़ी बाहर निकाली।

अर्जुन की आँखों में चमक आ गई। “हाँ! यही है मेरी कुल्हाड़ी! यही मेरी साथी है वर्षों से।”

अध्याय 5: पुरस्कार

परी बहुत प्रसन्न हुई। उसने मुस्कराते हुए कहा, “अर्जुन, तुम्हारी ईमानदारी ने मेरा हृदय छू लिया। ऐसे लोग आजकल बहुत कम मिलते हैं। इसलिए मैं तुम्हें तुम्हारी कुल्हाड़ी के साथ-साथ ये सोने और चाँदी की कुल्हाड़ियाँ भी उपहार में देती हूँ।”

अर्जुन ने हाथ जोड़कर धन्यवाद दिया और खुशी से झूमता हुआ घर लौट आया। उसकी पत्नी राधा और बेटा गोपाल बहुत खुश हुए। वह अब न केवल मेहनत करता था, बल्कि उसकी ईमानदारी का फल भी मिल गया था।

अध्याय 6: लालच का परिणाम

गाँव में अर्जुन की कहानी जंगल की आग की तरह फैल गई। सभी लोग उसके गुण गा रहे थे। लेकिन एक और लकड़हारा — नाम था रघु — यह सब सुनकर बहुत जल गया।

रघु ने सोचा, “अगर मैं भी उसी झील में जाकर झूठ बोल दूँ कि मेरी कुल्हाड़ी गिर गई है, तो मुझे भी सोने-चाँदी की कुल्हाड़ी मिल जाएगी!”

अगले दिन वह अपने लकड़ी के काम से पहले झील के किनारे गया। उसने जानबूझकर अपनी सस्ती कुल्हाड़ी झील में फेंकी और वहीं बैठकर नकली रोने लगा।

परी फिर से प्रकट हुई। उसने वही सवाल पूछा। रघु ने झूठ-मूठ दुःख जताया।

परी झील में गई और जब सोने की कुल्हाड़ी निकाली, तो रघु ने तुरंत कहा, “हाँ! यही मेरी कुल्हाड़ी है!”

परी का चेहरा गंभीर हो गया। उसने कड़ी आवाज़ में कहा, “तुम झूठ बोलते हो। तुम लालच में अंधे हो गए हो। इसलिए तुम्हें न तुम्हारी असली कुल्हाड़ी मिलेगी, और न ही इनाम।”

इतना कहकर परी और कुल्हाड़ियाँ दोनों गायब हो गईं। अब रघु के पास न कोई कुल्हाड़ी थी, और न कोई भरोसा।

अध्याय 7: गाँव को सबक

यह बात भी पूरे गाँव में फैल गई। अब गाँव के बच्चे भी यह बात दोहराते फिरते:
“सच बोलो, सच्चा बनो,
झूठ और लालच से दूर रहो!”

गाँव के बड़े बुज़ुर्ग भी अर्जुन को आदर्श मानने लगे। अर्जुन अपनी साधारण सी ज़िंदगी में, अब और भी खुश रहने लगा क्योंकि अब लोग उसकी ईमानदारी का सम्मान करते थे।

नैतिक शिक्षा:
ईमानदारी एक ऐसा गुण है जो न केवल दूसरों का भरोसा जीतता है, बल्कि जीवन में सच्ची सफलता और शांति भी देता है। लालच और झूठ चाहे पलभर के लिए लुभावने लगें, लेकिन उनका अंत हमेशा नुकसानदायक होता है।

सपनों की उड़ान: अंजलि की संघर्ष से सफलता तक की कहानी” || Success Story

 

सपनों की उड़ान

learnkro.com– बिहार के एक छोटे से गांव भवानीपुर में एक लड़की रहती थी—अंजलि कुमारी। उसका परिवार अमीर नहीं था, लेकिन उनके इरादे मजबूत थे। उसके पिता एक छोटे किसान थे, जो दिन-रात एक एकड़ ज़मीन पर मेहनत करते थे। उसकी मां सिलाई करके घर चलाने में मदद करती थीं। अंजलि के दो छोटे भाई-बहन थे, और एक उम्र से बड़ी जिम्मेदारी उसके कंधों पर थी।

लेकिन अंजलि अलग थी। उसकी आंखों में कुछ खास चमक थी, कुछ बड़ा करने की आग थी। जब वह सिर्फ 10 साल की थी, उसने तय किया:

“एक दिन मैं वर्दी पहनूंगी… किसी की सेवा करने नहीं, बल्कि देश की सेवा करने।”

उसका सपना था: IAS ऑफिसर बनना।

सपने की शुरुआत

अंजलि का स्कूल एक टूटी-फूटी सरकारी इमारत था, जिसमें ना बिजली थी, ना साफ पीने का पानी। बच्चे ज़मीन पर बैठते थे, और कई बार टीचर ही नहीं आते थे। उसके कई दोस्त कक्षा 6-7 के बाद पढ़ाई छोड़ चुके थे। लेकिन अंजलि का हौसला कायम रहा।

वो अपने चचेरे भाई से शहर की पुरानी किताबें मांग कर पढ़ती थी। रात को ढिबरी के नीचे बैठकर पढ़ाई करती थी।

एक दिन गांव में एक अफसर आए—सफेद एंबेसडर गाड़ी में, गार्ड्स के साथ। पूरा गांव देखने के लिए इकट्ठा हो गया। अंजलि हैरान थी—इतना सम्मान, इतनी शक्ति!

रात को उसने पिता से पूछा, “पापा, ये कौन थे?”

पिता बोले, “ये जिलाधिकारी थे। IAS अफसर। बहुत बड़ा एग्जाम पास करके बनते हैं।”

उस दिन अंजलि को अपना रास्ता मिल गया।

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संघर्षों की शुरुआत

जैसे-जैसे अंजलि बड़ी होती गई, चुनौतियां भी बढ़ती गईं। 10वीं में पढ़ाई के साथ उसे खेत में भी हाथ बंटाना पड़ता, घर का काम भी करना होता। लेकिन किताबें उसका साथ कभी नहीं छोड़ती थीं।

10वीं बोर्ड में उसने 87% अंक लाकर गांव में नाम रोशन कर दिया। स्कूल के प्रधानाचार्य ने कहा, “ये लड़की भवानीपुर की शान बनेगी।”

पर आगे की पढ़ाई के लिए स्कूल 10 किलोमीटर दूर था। उसके पास साइकिल नहीं थी, तो वो पैदल जाती थी—बारिश हो या धूप।

एक निर्णायक मोड़

12वीं की परीक्षा में अंजलि ने 92% अंक हासिल किए। अब वो पटना यूनिवर्सिटी में दाखिला चाहती थी। लेकिन खर्चा?

पिता बोले, “बेटा, हमारे पास इतने पैसे नहीं हैं।”

अंजलि बोली, “मैं ट्यूशन पढ़ा लूंगी… बस जाने दीजिए, पापा।”

वो पटना शिफ्ट हो गई—तीन लड़कियों के साथ एक कमरा शेयर करती थी। सुबह कॉलेज, शाम को ट्यूशन, और वीकेंड पर झाड़ू-पोंछा करती थी।

उसने B.A. में पॉलिटिकल साइंस ली और साथ ही UPSC की तैयारी शुरू कर दी।

UPSC की शुरुआत

UPSC दुनिया के सबसे कठिन परीक्षाओं में से एक है। लाखों लोग हर साल बैठते हैं, और कुछ सौ ही पास कर पाते हैं।

अंजलि के पास महंगे कोचिंग, लैपटॉप या मोबाइल नहीं थे। लेकिन इरादा था। वो लाइब्रेरी से पुरानी NCERT किताबें पढ़ती, अखबार से नोट्स बनाती और सीनियर्स से चर्चा करती।

2019 में उसने पहली बार परीक्षा दी—Prelims पास किया लेकिन Mains में फेल हो गई।

रात को चुपचाप रोई—but उसने हार नहीं मानी।

2020 में दोबारा कोशिश की—Mains पास कर लिया, लेकिन Interview में रह गई।

“शायद ये मेरे बस की बात नहीं है…” उसने सोचा।

लेकिन फिर उसे अपनी मां का चेहरा याद आया, अपने गांव की लड़कियां, और वो आग जो अभी भी अंदर जल रही थी।

वो फिर से किताबों में डूब गई।

अंतिम और निर्णायक प्रयास

2021 में अंजलि ने तीसरी बार परीक्षा दी।

अब वह पहले से ज़्यादा तैयार थी। उसने खुद के शॉर्ट नोट्स बनाए, मॉक इंटरव्यू दिए और एक बार दिल्ली जाकर रिटायर्ड IAS ऑफिसर से सलाह भी ली।

Prelims में अच्छा स्कोर आया। Mains के पेपर लिखे और मुस्कुराते हुए बाहर निकली।

Interview के दिन वह एक सादी सी साड़ी में, आत्मविश्वास से भरी हुई UPSC भवन में दाखिल हुई।

एक सवाल आया: “तुम IAS क्यों बनना चाहती हो?”

उसने उत्तर दिया: “ताकि कोई भी लड़की अपने सपने सिर्फ गरीबी की वजह से ना छोड़े।”

बोर्ड के सदस्य मुस्कुरा उठे।

AIR 38 – सपना हुआ साकार

30 मई 2022 को UPSC का रिजल्ट आया।

अंजलि कुमारी – All India Rank 38

पूरे गांव में जैसे त्योहार मनाया गया। मीडिया, स्थानीय नेता, हर कोई अंजलि की तारीफ कर रहा था।

जिस कलेक्टर ने कभी गांव में आकर उसे प्रेरित किया था, अब वो खुद अंजलि को कॉल कर रहा था।

पिता ने रोते हुए कहा, “अब मेरी बेटी ही कलेक्टर है।”

प्रभाव और पहल

LBSNAA मसूरी में ट्रेनिंग के बाद अंजलि ने एक वादा किया: “मैं अपने गांव को नहीं भूलूंगी।”

उसने गांव की लड़कियों के लिए Scholarship Fund शुरू किया और एक पहल चलाई:

“Dream Beyond Borders” – जिससे गांव और दूरदराज़ के छात्रों को मुफ्त गाइडेंस दिया जाता है।

वो स्कूलों में जाती, बच्चों को प्रेरित करती, और कहती:
“मैं कर सकती हूं, तो तुम भी कर सकते हो।”

आज की अंजलि

आज अंजलि झारखंड की एक जिला अधिकारी (District Magistrate) है।

उसने दूर-दराज़ के इलाकों में सड़कें बनवाई, आदिवासी बच्चों के लिए स्कूल खोले, और सरकारी योजनाएं सही लोगों तक पहुंचाईं।

उसकी आत्मकथा “छोटी सी लड़की, बड़ा सपना” अब स्कूलों में पढ़ाई जाती है।

युवाओं के लिए संदेश

अंजलि की कहानी सिर्फ IAS बनने की नहीं है, बल्कि ये कहानी है—

  • सपनों की ताकत की
  • संघर्ष से सफलता की
  • एक गांव की लड़की के दुनिया जीतने की

वो कहती है:

“पृष्ठभूमि नहीं, सोच आपकी पहचान बनाती है।”

“संसाधन नहीं, जज़्बा सफलता लाता है।”

निष्कर्ष

एक ऐसी लड़की जिसने कभी टूटी चारपाई पर बैठकर पढ़ाई की, आज वही ऑफिसर बनकर फैसले ले रही है।

अंजलि कुमारी की कहानी हर उस लड़की को उम्मीद देती है जो सपने देखने से डरती है।

यह कहानी सिर्फ प्रेरणा नहीं है…
यह एक सबूत है—कि सपने सच होते हैं।