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सच्चाई का मूल्य || Moral Story

 

सच्चाई का मूल्य

 

learnkro.com– छोटे से गाँव सुदीपुर में एक गरीब लड़का रहता था – उसका नाम था अर्जुन। उसका परिवार खेती-किसानी करके मुश्किल से अपना गुज़ारा करता था। पढ़ने में तेज़, लेकिन हालात के चलते स्कूल अक्सर छोड़ना पड़ता। पर अर्जुन ने कभी भी अपनी मेहनत और ईमानदारी से समझौता नहीं किया।

गाँव के एक कोने में एक पुराना स्कूल था, जहाँ मास्टरजी रामप्रसाद पढ़ाया करते थे। उन्होंने अर्जुन की लगन देखी और बिना फीस के उसे पढ़ाने लगे। अर्जुन पढ़ाई में दिन-ब-दिन आगे बढ़ता गया। किताबें पुरानी मिलतीं, कपड़े फटे होते, पर आँखों में सपने चमकते।

एक दिन गाँव में खबर फैली कि शहर के एक बड़े स्कूल में छात्रवृत्ति (स्कॉलरशिप) की परीक्षा होगी – जिसे पास करने पर शहर में मुफ्त पढ़ाई और रहने की सुविधा मिलेगी। अर्जुन के चेहरे पर उम्मीद की एक चमक आ गई। रामप्रसाद जी ने कहा, “बेटा, मेहनत से मत घबराना। अवसर मिले तो उसे दोनों हाथों से पकड़ना।”

अर्जुन ने जी-जान लगाकर परीक्षा की तैयारी शुरू कर दी।

परीक्षा का दिन आया। अर्जुन को पास के कस्बे में परीक्षा देने जाना था। माँ ने उसका बस्ता ठीक किया, और अपनी बचत में से तीन रुपए उसके हाथ पर रख दिए—सिर्फ आने-जाने के किराए भर के लिए।

बस स्टैंड तक पैदल चलकर अर्जुन समय पर पहुँचा। परीक्षा कक्ष में सब बच्चे महँगे कपड़ों और किताबों के साथ आए थे। अर्जुन थोड़ा सहमा, लेकिन मन में विश्वास था।

परीक्षा शुरू हुई।

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कुछ ही मिनट बाद अर्जुन को लगा कि उसके बगल वाला लड़का बार-बार उसे देखने की कोशिश कर रहा है। थोड़ी देर में उसने एक पुर्जा निकालकर चुपचाप अर्जुन की तरफ सरकाया।

“तू भी देख ले, पूरे उत्तर हैं,” उसने फुसफुसाकर कहा।

अर्जुन ने एक बार उस पुर्जे को देखा, फिर अपनी उत्तर पुस्तिका। फिर हल्की मुस्कान के साथ उस पुर्जे को वापस लौटा दिया।

वह लड़का झुंझलाकर बोला, “तू बेवकूफ है! पास नहीं होगा।”

लेकिन अर्जुन का मन शांत था।

परीक्षा के बाद वह चुपचाप अपने घर लौट आया। मन में थोड़ा डर भी था – क्या वह वाकई पास हो पाएगा? शहर जाना उसका सपना था, पर उसका रास्ता इतना आसान नहीं था।

तीन हफ्ते बाद शहर के स्कूल से एक पत्र आया – अर्जुन को छात्रवृत्ति मिल गई थी। वह प्रथम स्थान पर था।

पूरा गाँव खुशियाँ मना रहा था। माँ की आँखों में आँसू थे – गर्व के आँसू।

अर्जुन शहर गया। स्कूल सुंदर था, सारी सुविधाएँ थीं, और पढ़ाई का स्तर काफी ऊँचा।

कुछ महीने बीते। एक दिन स्कूल के प्रधानाचार्य ने सब छात्रों से कहा, “हमें एक प्रतिनिधि चाहिए जो अंतर-विद्यालय विज्ञान प्रतियोगिता में स्कूल का नेतृत्व करे।”

कई नाम आए, लेकिन चयन हुआ अर्जुन का।

प्रतियोगिता के लिए छात्रों को समूहों में बांटा गया। अर्जुन के समूह में वही लड़का भी था जो उस दिन परीक्षा में नकल करा रहा था — नाम था रोहन।

अर्जुन उसे देखकर थोड़ा चौंका, लेकिन कुछ बोला नहीं। रोहन को शर्मिंदगी हुई, पर अर्जुन ने उससे कभी कटुता नहीं दिखाई। उन्होंने साथ मिलकर परियोजना पर काम किया।

प्रतियोगिता में उनके समूह ने पहला स्थान हासिल किया। मीडिया में अर्जुन और रोहन की जोड़ी की चर्चा हुई।

एक इंटरव्यू में जब पत्रकार ने अर्जुन से पूछा, “क्या कभी आपने अनुचित रास्ते अपनाने की सोची?”

अर्जुन मुस्कराया, “सच्चाई एक मशाल की तरह होती है – रास्ता कठिन हो सकता है, लेकिन उजाला वही देती है।”

रोहन, जो पास ही बैठा था, भावुक हो गया। उसने मंच पर ही कहा, “मैं कभी अर्जुन को छोटा समझता था। लेकिन आज जान गया हूँ कि ईमानदारी ही असली ताकत है। वह मेरा मार्गदर्शक बन गया है।”

अर्जुन की कहानी धीरे-धीरे राज्य स्तर तक पहुँची। उसे विभिन्न मंचों पर आमंत्रित किया जाने लगा। उसने कभी भी अपनी सादगी या विनम्रता नहीं छोड़ी।

कुछ वर्षों बाद, अर्जुन ने इंजीनियरिंग में टॉप किया और विदेश से शोध कार्य करने का प्रस्ताव मिला। लेकिन उसने विदेश जाने से पहले एक वादा निभाया — उसने अपने गाँव सुदीपुर में एक आधुनिक स्कूल की स्थापना की, जहाँ कोई बच्चा सिर्फ पैसे के अभाव में अपनी पढ़ाई न छोड़े।

स्कूल का नाम रखा गया – “सत्यदीप विद्यालय”

आज अर्जुन जहाँ भी जाता है, उसके नाम से पहले एक उपमा लगती है – “ईमानदारी का प्रतीक”

कहानी की सीख:

ईमानदारी हमेशा कठिन हो सकती है, लेकिन अंत में वही सबसे मूल्यवान होती है।

अंधेरे से उजाले तक: रवि की कहानी || Success Story

अंधेरे से उजाले तक: रवि की कहानी”

भाग 1: छोटे शहर का बड़ा सपना

Learnkro.com– गुजरात के एक छोटे से गाँव में, रवि नाम का एक साधारण लड़का रहता था। उसके पिता एक दर्ज़ी थे और माँ गृहिणी। गाँव में बिजली अक्सर गुल रहती थी, लेकिन रवि का सपना कभी मंद नहीं हुआ। वह बड़े होकर इंजीनियर बनना चाहता था।

बचपन से ही उसे मशीनों को खोलने, जोड़ने और समझने का शौक था। पिता के पुराने सिलाई मशीन के पुर्ज़ों से वह खिलौनों की जगह कुछ न कुछ नया बनाता रहता। उसके दोस्तों को क्रिकेट पसंद था, लेकिन रवि को विज्ञान के प्रयोगों में मज़ा आता।

लेकिन… एक दिन ऐसा आया जब उसके पिता की तबीयत बहुत बिगड़ गई और घर की आर्थिक स्थिति डगमगाने लगी। उस समय रवि दसवीं कक्षा में था, और यह वही मोड़ था जिसने उसे ज़िंदगी का असली पाठ पढ़ाया…

भाग 2: संघर्ष की आग में तपना

पिता की बीमारी ने परिवार को झकझोर दिया। रवि अब न सिर्फ एक विद्यार्थी था, बल्कि परिवार की जिम्मेदारी भी उसके कंधों पर आ गई थी। वह स्कूल से लौटकर पास के एक साइबर कैफ़े में काम करने लगा — कंप्यूटर साफ करना, प्रिंट निकालना, और ग्राहकों की मदद करना उसका रोज़ का काम बन गया।

यहाँ उसकी दोस्ती हुई मालिक के भतीजे अमन से, जो इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा था। अमन ने रवि को कोडिंग की दुनिया से परिचित कराया — HTML, CSS और फिर Python। रवि रात में कैफ़े का एक पुराना सिस्टम इस्तेमाल करता और कोडिंग के वीडियो देख-देखकर खुद सीखता।

उसके जीवन में एक नई रोशनी जग चुकी थी।

भाग 3: पहली जीत

बारहवीं पास करने के बाद रवि ने एक सरकारी पॉलीटेक्निक कॉलेज में दाख़िला लिया। वहाँ उसे छात्रवृत्ति मिली जिससे उसकी फीस भर पाना संभव हुआ। साथ ही, उसने ऑनलाइन फ्रीलांसिंग साइट्स पर छोटे-मोटे प्रोजेक्ट लेना शुरू कर दिया — वेबसाइट बनाना, फॉर्म डिज़ाइन करना, और डेटा एंट्री।

धीरे-धीरे उसके छोटे-छोटे कामों से पैसे आने लगे। उसने अपने पहले लैपटॉप के लिए खुद पैसे जमा किए। वो दिन उसके लिए एक सपने के सच होने जैसा था — जब उसने अपने पैसों से पहली बार एक नई चीज़ खरीदी थी।

भाग 4: सफलता की सीढ़ियाँ

तीन साल बाद रवि ने एक बड़ी कंपनी में इंटर्नशिप की। वहाँ उसने एक एप्लिकेशन डिज़ाइन किया जो ग्रामीण इलाकों के छात्रों को तकनीकी शिक्षा प्रदान करने में मदद करता था। उसी एप के ज़रिए उसे एक स्टार्टअप से ऑफर आया — “हम तुम्हारे आइडिया में निवेश करना चाहते हैं।”

अब वह सिर्फ एक कर्मचारी नहीं, बल्कि एक टेक्नोलॉजी स्टार्टअप का को-फाउंडर बन चुका था। उसके बनाए एप्लिकेशन ने कई राज्यों में हज़ारों छात्रों की मदद की।

भाग 5: गाँव में लौटा हीरो

सफलता की ऊँचाइयों तक पहुँचने के बाद, रवि अपने गाँव लौटा। उसने वहीं एक ‘Digital Learning Center’ शुरू किया — जहाँ छात्रों को मुफ्त में कोडिंग, डिजिटल स्किल्स और करियर गाइडेंस दी जाती है। अब वह अपने जैसे तमाम छोटे गाँव के युवाओं को सपने देखने और उन्हें पूरा करने की हिम्मत दे रहा है।

अंतिम विचार

रवि की कहानी हमें सिखाती है कि परिस्थिति चाहे कितनी भी कठिन क्यों न हो, अगर इरादा मजबूत हो और मेहनत सच्ची, तो कोई भी लक्ष्य असंभव नहीं।

एक लकड़हारे की सच्ची जीत || Moral Story

 

“ईमानदारी की झील: एक लकड़हारे की सच्ची जीत

 

अध्याय 1: गाँव का लकड़हारा

Learnkro.com– बहुत समय पहले भारत के एक छोटे, हरे-भरे गाँव में अर्जुन नाम का एक गरीब लकड़हारा रहता था। उसका जीवन सरल था, पर वह बहुत मेहनती और सच्चा इंसान था। हर सुबह सूरज के साथ उठकर, वह अपना पुराना कुल्हाड़ी लेकर पास के जंगल में पेड़ काटने चला जाता, जिससे लकड़ियाँ इकट्ठी करके बाजार में बेच सके। अर्जुन की पत्नी राधा और उसका छोटा बेटा गोपाल ही उसका परिवार थे।

अर्जुन को अपनी गरीबी का कभी दुःख नहीं हुआ क्योंकि उसके पास आत्मसम्मान और ईमानदारी थी।

अध्याय 2: संकट की घड़ी

एक दिन गर्मियों की दोपहर थी। अर्जुन जंगल में पेड़ काट रहा था। वह बहुत थक गया था, लेकिन काम पूरा करना चाहता था। एक बड़ी सूखी डाल काटते वक़्त उसकी कुल्हाड़ी का हैंडल पसीने की वजह से फिसल गया और कुल्हाड़ी उछलकर पास की गहरी झील में जा गिरी।

अर्जुन चौक पड़ा। वह झील के किनारे भागा, लेकिन झील इतनी गहरी और साफ़ थी कि कुल्हाड़ी का नामोनिशान भी नज़र नहीं आया। वह झील के किनारे बैठकर अपने सिर पर हाथ रखकर रोने लगा। “हे भगवान! अब मैं क्या करूँगा? कुल्हाड़ी के बिना तो मेरा काम ही नहीं चलेगा!”

अध्याय 3: परी का प्रकट होना

अर्जुन की ईमानदारी और उसकी सच्चाई से प्रभावित होकर झील के पानी में लहरें उठीं, और अचानक एक तेज़ सुनहरा प्रकाश फैला। उस प्रकाश से एक सुंदर परी प्रकट हुई। उसके माथे पर चाँद-सा तेज़ था और आवाज़ एक गीत की तरह मधुर।

परी बोली, “अर्जुन, मैंने तुम्हारी पुकार सुनी है। तुम परेशान क्यों हो?”

अर्जुन आश्चर्य में डूबा था, पर उसने घबराए बिना कहा, “हे देवी, मेरी कुल्हाड़ी इस झील में गिर गई है। वही मेरी रोज़ी-रोटी का सहारा थी। अब मैं अपने परिवार का पेट कैसे पालूँगा?”

परी मुस्कराई। “चिंता मत करो। मैं तुम्हारी सहायता करूँगी,” कहकर वह झील में डुबकी लगाई।

अध्याय 4: परी की परीक्षा

परी झील से बाहर आई तो उसके हाथ में एक सोने की कुल्हाड़ी थी। उसने चमकदार कुल्हाड़ी अर्जुन को दिखाते हुए पूछा, “क्या यह तुम्हारी कुल्हाड़ी है?”

अर्जुन ने इधर-उधर देखा और फिर धीरे से बोला, “नहीं देवी, ये मेरी कुल्हाड़ी नहीं है। मेरी कुल्हाड़ी तो लोहे की पुरानी-सी है।”

परी फिर झील में गई और इस बार वह चाँदी की कुल्हाड़ी लेकर आई। उसने वही सवाल दोहराया।

अर्जुन ने फिर सिर हिलाते हुए मना किया, “नहीं देवी, यह भी मेरी कुल्हाड़ी नहीं है।”

अब परी तीसरी बार झील में उतरी और इस बार उसने पुरानी, जंग लगी लोहे की कुल्हाड़ी बाहर निकाली।

अर्जुन की आँखों में चमक आ गई। “हाँ! यही है मेरी कुल्हाड़ी! यही मेरी साथी है वर्षों से।”

अध्याय 5: पुरस्कार

परी बहुत प्रसन्न हुई। उसने मुस्कराते हुए कहा, “अर्जुन, तुम्हारी ईमानदारी ने मेरा हृदय छू लिया। ऐसे लोग आजकल बहुत कम मिलते हैं। इसलिए मैं तुम्हें तुम्हारी कुल्हाड़ी के साथ-साथ ये सोने और चाँदी की कुल्हाड़ियाँ भी उपहार में देती हूँ।”

अर्जुन ने हाथ जोड़कर धन्यवाद दिया और खुशी से झूमता हुआ घर लौट आया। उसकी पत्नी राधा और बेटा गोपाल बहुत खुश हुए। वह अब न केवल मेहनत करता था, बल्कि उसकी ईमानदारी का फल भी मिल गया था।

अध्याय 6: लालच का परिणाम

गाँव में अर्जुन की कहानी जंगल की आग की तरह फैल गई। सभी लोग उसके गुण गा रहे थे। लेकिन एक और लकड़हारा — नाम था रघु — यह सब सुनकर बहुत जल गया।

रघु ने सोचा, “अगर मैं भी उसी झील में जाकर झूठ बोल दूँ कि मेरी कुल्हाड़ी गिर गई है, तो मुझे भी सोने-चाँदी की कुल्हाड़ी मिल जाएगी!”

अगले दिन वह अपने लकड़ी के काम से पहले झील के किनारे गया। उसने जानबूझकर अपनी सस्ती कुल्हाड़ी झील में फेंकी और वहीं बैठकर नकली रोने लगा।

परी फिर से प्रकट हुई। उसने वही सवाल पूछा। रघु ने झूठ-मूठ दुःख जताया।

परी झील में गई और जब सोने की कुल्हाड़ी निकाली, तो रघु ने तुरंत कहा, “हाँ! यही मेरी कुल्हाड़ी है!”

परी का चेहरा गंभीर हो गया। उसने कड़ी आवाज़ में कहा, “तुम झूठ बोलते हो। तुम लालच में अंधे हो गए हो। इसलिए तुम्हें न तुम्हारी असली कुल्हाड़ी मिलेगी, और न ही इनाम।”

इतना कहकर परी और कुल्हाड़ियाँ दोनों गायब हो गईं। अब रघु के पास न कोई कुल्हाड़ी थी, और न कोई भरोसा।

अध्याय 7: गाँव को सबक

यह बात भी पूरे गाँव में फैल गई। अब गाँव के बच्चे भी यह बात दोहराते फिरते:
“सच बोलो, सच्चा बनो,
झूठ और लालच से दूर रहो!”

गाँव के बड़े बुज़ुर्ग भी अर्जुन को आदर्श मानने लगे। अर्जुन अपनी साधारण सी ज़िंदगी में, अब और भी खुश रहने लगा क्योंकि अब लोग उसकी ईमानदारी का सम्मान करते थे।

नैतिक शिक्षा:
ईमानदारी एक ऐसा गुण है जो न केवल दूसरों का भरोसा जीतता है, बल्कि जीवन में सच्ची सफलता और शांति भी देता है। लालच और झूठ चाहे पलभर के लिए लुभावने लगें, लेकिन उनका अंत हमेशा नुकसानदायक होता है।

सच्चाई की जीत || Moral Story

सच्चाई की जीत

 

learnkro.com- एक छोटे से गाँव में, एक नेक और ईमानदार लड़का रहता था जिसका नाम रोहन था। रोहन अपने माता-पिता के साथ रहता था और हमेशा उनकी बात मानता था। वह अपने गाँव के लोगों के लिए बहुत प्यार और सम्मान रखता था।

एक दिन, रोहन के पड़ोसी ने उसके माता-पिता से कहा कि रोहन ने उनका एक मूल्यवान हार चोरी किया है। पड़ोसी ने कहा कि उसने रोहन को हार के साथ देखा था और उसे पूरा यकीन था कि रोहन ने ही हार चोरी किया है।

रोहन के माता-पिता ने उस पर विश्वास नहीं किया, लेकिन पड़ोसी की बातों में आकर उन्होंने रोहन को डांटा और उसे घर से बाहर निकाल दिया। रोहन बहुत दुखी हुआ और उसने अपने माता-पिता से कहा कि उसने हार नहीं चोरी किया है। लेकिन किसी ने उसकी बात नहीं मानी।

रोहन ने अपने माता-पिता को समझाने की कोशिश की, लेकिन वे नहीं माने। रोहन ने सोचा कि शायद उसके माता-पिता को लगता है कि वह सचमुच हार चोरी करने वाला है। लेकिन रोहन जानता था कि उसने कुछ गलत नहीं किया था।

कुछ दिनों बाद, पड़ोसी का बेटा आया और उसने अपने अपराध को स्वीकार किया कि उसने ही हार चोरी किया था। उसने कहा कि उसने रोहन को फंसाने के लिए ऐसा किया था क्योंकि वह रोहन से जलता था।

रोहन के माता-पिता ने अपनी गलती का एहसास किया और रोहन से माफी मांगी। उन्होंने रोहन को घर वापस बुलाया और उसे गले लगाया। रोहन ने अपने माता-पिता को माफ कर दिया और उन्हें समझाया कि सच्चाई की जीत होती है।

रोहन के माता-पिता ने सीखा कि किसी पर भी बिना सबूत के आरोप नहीं लगाना चाहिए। उन्होंने रोहन को धन्यवाद दिया कि उसने सच्चाई के लिए लड़ाई लड़ी और उन्हें अपनी गलती का एहसास कराया।

नैतिक: सच्चाई की जीत होती है, और हमें हमेशा सच बोलना चाहिए।

आयु वर्ग: 4-12 वर्ष

चित्र:

– रोहन और उसके माता-पिता
– पड़ोसी और उसका बेटा
– रोहन को घर से निकालते हुए
– पड़ोसी के बेटे का अपराध स्वीकार करना
– रोहन के माता-पिता द्वारा माफी मांगना
– रोहन और उसके माता-पिता का पुनर्मिलन

मुझे उम्मीद है कि आपको यह कहानी पसंद आई होगी! learnkro.com

घड़ीसाज़ की खामोशी || Moral Story

learnkro.com -बर्फ से लदे पहाड़ों के बीच बसे एक भूले-बिसरे शहर के बीचोबीच, एलिओर नाम का एक बूढ़ा घड़ीसाज़ रहता था। उनकी दुकान, “टाइमलेस हैंड्स”, मुख्य सड़क के किनारे स्थित थी, जिसका लकड़ी का बोर्ड दशकों की हवा और बारिश के कारण घिस गया था। लोग दूर-दूर से उसकी कृतियों को देखने आते थे – घड़ियाँ जो गाती थीं, नाचती थीं और अपनी कहानियाँ सुनाती थीं। फिर भी, एलिओर खुद किसी से बात नहीं करता था।
ऐसा नहीं था कि वह बोल नहीं सकता था – उसने न बोलने का विकल्प चुना।
किसी को याद नहीं कि उसने आखिरी बार कब एक शब्द बोला था। बच्चे फुसफुसाते थे कि उसने एक बार एक राजा से बात की थी और कुछ कीमती खो दिया था। वयस्क उसकी खामोशी का सम्मान करते थे, क्योंकि उसकी आँखों में हज़ारों अनकही कहानियाँ थीं।
एक ठंडी सुबह, कियान नाम का एक लड़का शहर में आया। युद्ध में अनाथ और भाग्य से प्रेरित होकर, वह भोजन की तलाश में नहीं, बल्कि ज्ञान की तलाश में शहर से गाँव भटकता रहा। उसने एक घड़ीसाज़ की कहानियाँ सुनी थीं, जिसकी खामोशी में ऐसे रहस्य छिपे थे जो कोई किताब कभी नहीं बता सकती।
कियान दुकान के पास गया। जैसे ही उसने दरवाज़ा खोला, घंटी बज उठी। पुरानी लकड़ी, पीतल और तेल की महक हवा में भर गई। हजारों दिल एक साथ बोलने लगे। बूढ़े आदमी ने अपनी बेंच से नज़र उठाई। उसकी आँखें, तूफ़ानी बादलों की तरह धूसर, कियान से मिलीं। “मैं सीखना चाहता हूँ,” कियान ने कहा। “सिर्फ घड़ियाँ ही नहीं। मैं समय को समझना चाहता हूँ – कैसे यह हमें तोड़ता है, हमें ठीक करता है, और हमें आकार देता है।” एलीओर ने कुछ नहीं कहा। उसने बस एक बार सिर हिलाया और लड़के को झाड़ू थमा दी। और इस तरह उनकी मौन प्रशिक्षुता शुरू हुई। दिन हफ़्तों में बदल गए। कियान ने फ़र्श साफ़ किया, गियर पॉलिश किए, और एलीओर को धातु पर समय उकेरते देखा। लड़के ने सवाल पूछे। बूढ़े आदमी ने इशारों, भौंहों को ऊपर उठाकर और कभी-कभी, जानकार मुस्कान के साथ जवाब दिया। कियान ने मौन की लय, शब्दों से परे सुनने का मूल्य सीखा। लेकिन एक बात ने उसे हैरान कर दिया। दुकान के पीछे एक भव्य, आधी-अधूरी घड़ी खड़ी थी – जैसी उसने पहले कभी नहीं देखी थी। इसका फ्रेम एक चमकदार काली लकड़ी से बना था जो प्रकाश को अवशोषित करता हुआ प्रतीत होता था। पेंडुलम का आकार रेतघड़ी जैसा था, और डायल के चारों ओर बारह दर्पण लगे थे, जिनमें से प्रत्येक एक अलग छवि को प्रतिबिंबित कर रहा था – एक रोती हुई महिला, एक जलती हुई किताब, एक युवक दूर जा रहा था…
एलियोर ने इसे कभी नहीं छुआ।
एक रात, अपनी जिज्ञासा को रोक पाने में असमर्थ, कियान ने पूछा, “वह घड़ी क्या है?”
एलियोर स्तब्ध रह गया।
वह खड़ा हुआ, धीरे-धीरे घड़ी की ओर चला, और धीरे से उसके लकड़ी के फ्रेम पर हाथ रखा। फिर उसने एक दराज खोली और एक छोटी, फीकी नोटबुक निकाली। उसने इसे कियान को सौंप दिया।
इसके अंदर चित्र थे – रहस्यमय घड़ी के ब्लूप्रिंट – और जर्नल प्रविष्टियाँ। जैसे-जैसे कियान पढ़ता गया, उसे सच्चाई का पता चला।
सालों पहले, एलियोर का एक बेटा था जिसका नाम लुसिएन था, जो एक शानदार आविष्कारक था। पिता और बेटे ने संगीत, भावना और स्मृति के साथ यांत्रिकी को मिलाकर एक साथ काम किया। उनका सपना “सोल क्लॉक” बनाना था – एक ऐसी घड़ी जो क्षणों को संग्रहीत कर सके, उन्हें प्रोजेक्ट कर सके, यहाँ तक कि अनंत काल के लिए एक भावना को स्थिर कर सके।
लेकिन लुसिएन और अधिक चाहता था। वह समय को पीछे ले जाना चाहता था। उसका मानना ​​था कि अगर समय को बदला जा सके, तो गलतियों को मिटाया जा सकता है।
एलियोर ने उसे चेतावनी दी – “समय एक उपकरण नहीं है; यह एक शिक्षक है।”
लुसिएन ने उसकी बात नहीं सुनी। एक दिन, एक असफल प्रयोग के दौरान, कुछ गलत हो गया। विस्फोट ने दुकान के एक हिस्से को नष्ट कर दिया और लुसिएन को अपने साथ ले गया। उसके केवल टुकड़े बचे थे – अधूरे सोल क्लॉक के दर्पणों में कैद यादें।
उसके बाद, एलियोर ने फिर कभी बात नहीं की।
कियान ने नोटबुक बंद कर दी, कहानी के बोझ से दिल भारी हो गया। बूढ़े आदमी की खामोशी कड़वाहट नहीं थी। यह दुख था।
अगली सुबह, कियान ने सोल क्लॉक की मरम्मत शुरू कर दी। एलियोर ने देखा लेकिन उसे रोका नहीं। इसके बजाय, उसने उपकरण, आरेख और गायब हिस्से निकाले।
हफ़्तों तक, उन्होंने मेमोरी मशीन को फिर से बनाने के लिए एक साथ काम किया।
जब अंतिम गियर सेट किया गया, और घड़ी ने टिक करना शुरू किया, तो दर्पण चमक उठे। एक-एक करके, उन्होंने क्षणों को दोहराया – लुसिएन की हँसी, पिता और बेटे एक साथ काम कर रहे थे, दुर्घटना का दिन। फिर कुछ अप्रत्याशित हुआ। बारहवाँ दर्पण – हमेशा खाली – चमकने लगा। इसने एक नई याद दिखाई: कियान और एलियोर, एक साथ निर्माण कर रहे थे, साझा मौन के माध्यम से ठीक हो रहे थे। एलियोर की आँखों में आँसू आ गए। घड़ी के डायल तक पहुँचने और उसे पीछे की ओर घुमाने पर उसका हाथ काँप उठा। कमरा धुंधला हो गया। कियान ने साँस रोकी। उसके चारों ओर, दुकान बदल गई। यह अधिक चमकदार, अधिक तेज़ थी। लुसिएन वहाँ खड़ा था, जीवित, हँस रहा था, अपने पिता को एक नया गियर दिखा रहा था। यह एक याद थी, वास्तविकता नहीं। एलियोर ने अपने बेटे को आखिरी बार देखा, फिर डायल को वर्तमान में वापस घुमाया। दुकान सामान्य हो गई। सोल क्लॉक ने टिक करना बंद कर दिया। बूढ़ा आदमी आखिरकार बोला, आवाज़ सूखी और फटी हुई थी: “कुछ पल फिर से जीने के लिए नहीं होते। केवल याद रखने के लिए होते हैं।” कियान ने कुछ नहीं कहा। उसने सबसे बड़ा सबक सीखा था – समय के बारे में नहीं, बल्कि जाने देने के बारे में। अगले दिन, एलीओर ने कियान को दुकान की चाबियाँ दीं और दशकों के दुख और गियर को पीछे छोड़कर चला गया। कियान, जो अब नया घड़ीसाज़ है, ने दुकान के नाम के नीचे एक चिन्ह जोड़ा: “समय सभी घावों को ठीक नहीं करता। लेकिन यह सिखाता है कि उनके साथ कैसे जीना है।”

कहानी का सार (Moral of the Story ):
सच्चा उपचार अतीत को बदलने से नहीं आता, बल्कि उसे स्वीकार करने, उससे सीखने और नए पल बनाने से आता है जो मायने रखते हैं।